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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३८०

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इनायत खाँ के इस अत्याचार को रोकने के लिये चन्द्रावल का अधिकारी कुम्पावत शम्भू बख्शी उदयसिंह और दुर्गादास का बेटे तेजसिंह राठौड़ सेना के साथ रवाना हुआ। फतहसिंह और रामसिंह शाहजादा अकबर के साथ दक्षिण गये थे। वहाँ पर शाहजादा को छोड़कर वे दोनों कुम्पावत की सहायता करने के लिये आ गये। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से राजपूत मुगलों के साथ युद्ध करने के लिये राठौड़ सेना में पहुँच गये। ये लोग मेवाड़ के कुछ नगरों में फैल गये और वहाँ के मुगल अधिकारी कासिमखाँ को उन लोगों ने मार डाला।

इन दिनों में राठौड़ों की शक्तियाँ बहुत क्षीण हो गई थीं और वे अब शक्तिशाली मुगल सेना के साथ युद्ध करने के योग्य न रह गये थे। इसलिये उनको पहाड़ों पर जाकर आश्रय लेना पड़ा। वे निर्बल हो गये थे। इसलिये वे पहाड़ों के ऊपर दुर्गम स्थानों में छिपे रहते थे और मौका पाकर एकाएक शत्रुओं पर आक्रमण करके उन्हें भीषण रूप से क्षति पहुँचाते थे और फिर इसके बाद वे सब लोग भाग कर फिर पहाड़ों पर चले जाते थे।

इस प्रकार की परिस्थितियों में राठौड़ों के कई महीने बीत गये। उन्होंने एक बार भयानक रूप से मुगलों की उस सेना पर आक्रमण किया, जो जैतारण नामक स्थान पर पड़ी हुई थी। राठौड़ों के अचानक आक्रमण से मुगल सेना का भयानक विनाश हुआ। उसके बाद राठौड़ फिर भागकर अपने पहाड़ी स्थानों पर चले गये। इस प्रकार के आक्रमण करके सम्वत् 1739 में राठौड़ों ने अपनी शक्तियाँ पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत बना ली। इन्हीं दिनों में चम्पावत विजयसिंह ने सोजत का दुर्ग जीतकर अपने अधिकार में कर लिया और राजपूतों की एक सेना लेकर रामसिंह ने मुगलों के साथ युद्ध किया। मिर्जा तूर अली नाम का एक मुसलमान चेरई का अधिकारी था। राठौड़ों ने उस पर आक्रमण किया और तीन घन्टे के युद्ध में हजारों मुसलमान जान से मारे गये।

चम्पावत उदयसिंह और मेड़ता के मोहकमसिंह ने जैतारण के युद्ध में एक राठौड़ सेना को भेजा था। उसके लौटने पर वे दोनों गुजरात की तरफ रवाना हुए और खेराल नगर में पहुँच कर गुजरात के अधिकारी सैयद मोहम्मद का उन्हें सामना करना पड़ा। मुस्लिम सेना ने अचानक राठौडों को घेर लिया। परन्तु रात हो जाने के कारण युद्ध नहीं हुआ। सवेरा होते ही दोनों तरफ के लोग आगे बढ़े और युद्ध आरम्भ हो गया। भाटी गोकुलदास अपने बहुत से आदमियों के साथ मारा गया। रामसिंह ने सैयद मोहम्मद की सेना के साथ भयानक युद्ध किया। परन्तु अन्त में वह भी मारा गया। इस युद्ध में राठौड़ों के सैनिक और सामन्त अधिक मारे गये। लेकिन पराजय मुसलमानों की हुई।

इसी वर्ष भादो के महीने में मुगल सेना ने पाली नगर पर आक्रमण किया। वहाँ पर राठौड़ों ने पाँच सौ मुगलों को युद्ध में पराजित किया। उनका सेनापति अफ़जलखा मारा गया। इस युद्ध में राठौड़ौं की तरफ से जिसने भीषण युद्ध किया था और मुगलों को पराजित किया था, उसका नाम वल्लू था।

इसके बाद उदयसिंह ने सोजत पर आक्रमण किया। जैतारण में राठौड़ों का फिर से प्रभुत्व कायम हुआ। बैसाख के महीने में मोहकमसिंह ने मेड़ता के बचे हुए मुगल सैनिकों पर आक्रमण किया। उस लड़ाई में सैयद अली मारा गया और उसके मरते ही मुगल सेना युद्ध के क्षेत्र से भाग गयी।

लगातार युद्धों, आक्रमणों और नर हत्याओं के साथ सम्वत् 1739 खत्म हुआ। इस वर्ष राठौड़ अधिक संख्या में मारे गये। लेकिन संख्या में बहुत कम होते हुए भी उन्होंने मुगलों के साथ भयानक युद्ध किये और भीषण रूप से शत्रुओं का संहार किया। इस वर्ष

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