की। किसी ने चौथ और किसी ने कर देना आरम्भ किया। इस वर्ष कासिमखाँ ने मुगल राज्य की यह दशा देखकर राठौरों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की। राजकुमार अजीत उन दिनों में विजयपुर में था। दुर्गादास का लड़का अपनी सेना लेकर मुगलों के सामने पहुँचा। युद्ध आरम्भ हुआ। संग्राम में सफीखाँ को पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में हारकर मुगल और भी निर्वल पड़ गये। शाहजादा अकुवर की लड़की अब भी दुर्गादास के आश्रय में थी। वादशाह औरंगजेब उसको राठौड़ों के आश्रय से लेने का कोई प्रबन्ध न कर सका। उसने उसके सम्बन्ध में जितने भी उपाय सोचे, सभी वेकार हो गये। राठौड़ों के साथ संधि करने का अभिप्राय कोई दूसरा न था। परन्तु उसका भी वह कुछ लाभ उठा न सका। इन दिनों में उसे राठौड़ों की शत्रुता खल रही थी और उनके साथ मित्रता का एक नाटक खेल कर वह कुछ लाभ न उठा पाता था। औरंगजेब ने कभी किसी का विश्वास करना नहीं सीखा था। वह नये पड़यंत्रों के द्वारा संसार की बड़ी-से-वड़ी शक्ति को अपने अधिकार में लाना चाहता था। औरंगजेब ने जोधपुर के अधिकारी सुजावतखाँ को लिखा-“जैसे भी हो सके, जिस किसी कीमत पर मुमकिन हो, मेरे सम्मान की रक्षा करो।" औरंगजेब के इन शब्दों का अर्थ शाहजादा अकबर की बेटी के सम्बन्ध में था। वह उसके प्रश्न को लेकर बहुत सशंकित हो रहा था और उसे राठौड़ों अधिकार से लेना चाहता था। परन्तु इसके लिए अभी तक उसको कोई मार्ग न मिला था। इसी वर्ष मेवाड़ के राणा ने अपने छोटे भाई राजसिंह की बेटी के साथ राजकुमार अजीत का विवाह सम्बन्ध निश्चित किया और इसके लिए मुक्ता जड़े हुए नारियल, वहुमूल्य हीरा-मोती और दो सजे हुये हाथी तथा दस घोड़े राजकुमार अजीत के पास भेजे गये। जेठ के महीने में सीसोदिया राजकुमारी के साथ अजीत का विवाह संस्कार हुआ। इसके दूसरे महीने आपाढ़ में राजकुमार अजीत ने अपना दूसरा विवाह देवलिया में किया। वादशाह औरंगजेब की चिन्तायें दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही थीं। वह सब कुछ सहन करना चाहता था, परन्तु वह नहीं चाहता था कि शाहजादा अकबर की बेटी के गौरव को किसी प्रकार आघात पहुंचे और उसके द्वारा उसका असम्मान हो । लेकिन इसके लिये उसके पास कोई उपाय न था। कभी-कभी चिन्तित होकर वह राजकुमार अजीत को पत्र भेजता । परन्तु उनका कोई लाभ न मिलने पर सम्वत् 1753 में उसने दुर्गादास के साथ पत्र व्यवहार किया। उसके फलस्वरूप अकवर की लड़की वादशाह को दे दी गयी और उसी अवसर पर राजकुमार अजीत अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। वादशाह ने दुर्गादास को पंचहजारी पद पर प्रतिष्ठित करने का इरादा किया। परन्तु दुर्गादास ने उसे नामंजूर करके कहा "इसके बदले में आप मुझे जालौर, सिकानची, सांचोर और थिराद दे सकते हैं।"दुर्गादास ने शाहजादा अकबर की लड़की को जिस सम्मान के साथ अपने यहाँ रखा था। उसे जानकर औरंगजेब ने दुर्गादास की बहुत प्रशंसा की। मेवाइ-राज्य में प्रतापगढ़ देवलिया नाम की एक छोटी सी रियामत है। इसे मल्ल ने बसाया था। इसकी उत्पत्ति और प्रतिष्ठा का उल्लेख मेवाड़-राज्य के इतिहास में किया जाता है अकबर को बेटी के लौटाये जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार के उल्लेख पाये जाते हैं। कुछ लेखकों का कहना है कि अजीत की इच्छा के विरुद्ध दुर्गादास ने उस लड़की को औरंगजेब को लौटाया था। इससे अजीत दुर्गादास से नाराज हुआ था। इस अवसर पर अजीत राजसिंहासन पर नहीं था।- अनुवादक 1. 2. 433
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३८७
दिखावट