पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०८

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विद्रोहियों के साथ मिलकर सरबुलंद खाँ ने अपने आपको स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दिया था। उसका दमन करने के लिये बादशाह अनेक प्रकार के उपाय सोचता रहा। इसके लिये उसने अपना एक बड़ा दरबार किया। उस दरबार में सोने के एक पात्र में पान का बीड़ा बनाकर रखा गया और उस दरबार में साम्राज्य के जितने भी राजा, सामन्त, अमीर-उमराव उपस्थित थे, सबके सामने सरबुलंद खाँ के दमन का प्रस्ताव रखा गया। उस समय दरबार के सभी लोगों ने इस बात को साफ-साफ समझ लिया कि पान का .यह बीड़ा उसी को उठाना चाहिये, जो सरबुलंद खाँ को पराजित कर सकने की सामर्थ्य रखता हो । बीड़े को रखे हुए कुछ समय बीत गया। उपस्थित शूरवीरों में किसी ने भी पान के उस बीड़े को उठाने का साहस न किया। दरबार के कितने ही अमीरों ने अपने सिर नीचे की तरफ झुका लिये। कितने ही लोगों ने उस बीड़े की तरफ देखने का भी साहस न किया। जो बादशाह अपनी शक्तियों के सामने किसी की कुछ परवाह न करता था और जिसके मामूली संकेत पर बड़े-बड़े राज्यों का विध्वंस और विनाश होता था, आज उसके दरबार में एक भी ऐसा शूरवीर नहीं है जो साम्राज्य की गिरती हुई दीवारों को बचा सके। दरबार में किसी के बीड़ा न उठाने पर बादशाह मोहम्मदशाह का अंतरतम कांप उठा। इसी समय में बैठे हुए एक अमीर ने कहा “जो सरबुलंद खाँ को पराजित कर सकता हो, उसी को पान का यह बीड़ा उठाना चाहिये।" उस अमीर की बात समाप्त होते ही दूसरे अमीर ने कहा - "सरबुलंद खाँ को परास्त करना सरल नहीं है। इसलिये समझ बूझकर आगे कदम उठाना चाहिये।" इसके बाद एक तीसरे अमीर ने कहा - "सरबुलंद खाँ के साथ युद्ध करना जहरीले साँप के मुख को पकड़ने से कम संकटपूर्ण नहीं है।" दरबार की यह परिस्थिति बादशाह को लगातार भयभीत बना रही थी। इस अवसर पर अमीरों ने दरबार में जो कुछ कहा, उससे दरबारियों के दिल और भी निर्बल पड़ गये । मारवाड़ का राजा अभयसिंह भी उस दरबार में बैठा था। वह गंभीरता के साथ दरबार की परिस्थिति का और उपस्थित लोगों के मनोभावों का अध्ययन कर रहा था। उसने जब देखा कि दरबार में पान का जो बीड़ा रखा गया था,उसके उठाने का किसी ने साहस नहीं किया तो उसने बीड़ा उठाने के लिये अपने मन में निर्णय किया। वह अपने स्थान से उठा और पान के उस बीड़े को उठाकर उसने अपनी पगड़ी पर रखा और फिर बादशाह को सम्बोधित करके कहा- "बादशाह आप निराश न हों । मैं इस विद्रोही सरबुलन्द खाँ को परास्त करूँगा और उसे मारकर उसका मस्तक आपके सामने लाकर रखूगा।" अभयसिंह के इस प्रकार बीड़ा उठाने को सभा में बैठे हुए अमीरों ने देखा और उसके बाद उन लोगों ने अभयसिंह की कही हुई बातों को सुना। उनके दिलों में अभयसिंह के प्रति ईर्ष्या का भाव पैदा हुआ। बादशाह ने अभयसिंह की बातों को सुनकर शान्ति और संतोष को अनुभव किया। उसने उसी समय अभयसिंह को गुजरात के शासन की सनद दी। यह देखकर अमीरों के दिलो में अभयसिंह के विरुद्ध ईर्ष्या की आग प्रज्जवलित हो उठी। सिंहासन पर बैठे हुए बादशाह मोहम्मदशाह ने अभयसिंह को सम्बोधित करते हुए कहा "आपके पूर्वजों ने इस सिंहासन की मर्यादा को सुरक्षित रखने के लिए सदा कोशिश की है और उसकी सहायता से मुगल राज्य की परेशानियाँ अनेक बार दूर हुई हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि आपके सहयोग से आज भी इस सिंहासन के सम्मान की रक्षा होगी।" । 454