पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४१०

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साथ मारवाड़ का प्रायः संघर्ष हुआ करता था। अभयसिंह ने इस अवसर पर अपनी शक्तिशाली सेना का लाभ उठाने की इच्छा की। सिरोही राज्य के तीन तरफ जो पहाड़ी जाति के लोग रहते थे, वे मीणा नाम से प्रसिद्ध थे। इन मीणा लोगों पर अभयसिंह ने आक्रमण करने का निश्चय किया। इन मीणा लोगों से मारवाड़ को अनेक परेशानियाँ पैदा हुआ करती थीं। सिरोही राज्य का कुछ हिस्सा मारवाड़ राज्य के समीप तक चला गया था। उस हिस्से में पहुँचकर मीणा लोग प्रायः मारवाड़ियों के साथ उत्पात किया करते थे। मारवाड़ के पशुओं को वे लोग अपने राज्य में ले जाते थे। अभी हाल में उन मीणा लोगों ने मारवाड़ के पशुओं का अपहरण किया था। इस प्रकार की परिस्थितियों में उनको पराजित करना और उनके कार्यों का दंड देना अभयसिंह के लिये आवश्यक था। इसके लिये यह अवसर बहुत अनुकूल था। उसका अभयसिंह ने लाभ उठाने के उद्देश्य से मीणा लोगों पर आक्रमण की तैयारी की। सिरोही राज्य के मीणा लोगों को इस होने वाले आक्रमण का समाचार मिला। वे लोग घबरा उठे । राठौड़ सेना के रवाना होने से पहले ही मीणा लोगों ने मारवाड़ के अपहत पशुओं को लौटा दिया और उस समय उन लोगों ने राठौड़ों के साथ ऐसा व्यवहार किया, जिससे उन पर जो आक्रमण होने जा रहा था, उसकी परिस्थिति ही बदल गयी। अभयसिंह ने अब सरबुलंद खाँ पर आक्रमण करने का निर्णय किया। इसके लिये उसने जो विशाल और शक्तिशाली सेना तैयार की थी, उसमें न केवल राठौड़ों की सेना थी, बल्कि राजस्थान के अनेक राज्यों की सेनाओं के साथ-साथ दो मुस्लिम सेनापतियों की सेना भी थी। इस अवसर पर अभयसिंह के झंडे के नीचे अनेक राजा अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आये थे, उनमें कोटा और बूंदी की हाड़ा सेना, गागरोन की खींची सेना, शिवपुर की गौड़ सेना, आमेर की कुशवाहा सेना और मरुभूमि की अनेक सेना प्रमुख थीं। अभयसिंह उन सभी सेनाओं का सेनापति था। सन् 1731 ई.के चैत्र महीने में जोधपुर को छोड़कर अभयसिंह अपनी शक्तिशाली सेना के साथ भाद्राजून, 'मालगढ़े', सिवाना और जालौर होता हुआ आगे बढ़ा। पहुँचकर उसने आक्रमण किया। उसी समय संग्राम आरंभ हो गया। चम्पावत सरदार कुछ समय के बाद मारा गया। देवड़ा के लोग पराजित होकर भागने लगे। वहाँ पर राठौड़ सेना ने भयानक मारपीट की। सिरोही के राजा ने जब सुना कि अभयसिंह की सेना ने रिवाड़ा और पोसालिया- दोनों का भीषण रूप से विध्वंस किया है तो वह घबरा उठा। निराश होकर सिरोही के राजा चौहान राव नारायण दास ने अपने भाई की लड़की का विवाह अभयसिंह के साथ करके अपनी रक्षा का विचार किया। सिरोही के राजा नारायणदास ने चावड़ा सामन्त मायाराम को मध्यस्थ बनाकर अभयसिंह के पास संधि का प्रस्ताव भेजा। उस प्रस्ताव में उसने अपने भाई मानसिंह की लड़की का विवाह कर देने का इरादा प्रकट किया। उसके बाद विवाह के प्रस्ताव में एक नारियल, आठ श्रेष्ठ घोड़ियाँ और चार हाथियों का झूल राव नारायणदास ने अभयसिंह के पास भेजा। अभयसिंह ने विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। युद्ध बंद हो गया। विवाह की तैयारियाँ होने लगी। अभयसिंह ने मानसिंह की लड़की के साथ विवाह किया। इस लड़की से दस महीने के बाद जोधपुर में जो बालक पैदा हुआ, उसका नाम रामसिंह रखा गया। राव नारायणदास ने भतीजी का विवाह कर देने के अतिरिक्त अभयसिंह को कर देना भी स्वीकार किया। 1 456