पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४५३

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शिवलाल की सेना लगातार अमीरखाँ का पीछा करती रही। अमीर खाँ सामन्तों के साथ वहाँ से भाग कर हरसोर नामक स्थान पर चला गया। शिवलाल ने वहाँ पहुँचकर फिर उस पर आक्रमण किया। चारों सामन्तों के साथ भागता हुआ अमीर खाँ जयपुर की सीमा पर फागी नामक स्थान पर चला गया। शिवलाल को पहले से इस बात का कुछ भी अनुमान न था कि अमीर खाँ कहीं पर भी डटकर युद्ध न करेगा और एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ लगातार वह भागता रहेगा। अमीर खाँ बहुत पहले से अपने अत्याचारों और षड़यंत्रों के लिए कुख्यात था। शिवलाल के आक्रमण से लगातार भागने में भी वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था। फागी नामक स्थान जयपुर की आखिरी सीमा पर था, वहाँ तक अमीर खाँ को भगाकर और जयपुर की सीमा से बाहर कर शिवलाल ने उसका पीछा करना अव आवश्यक न समझा। उसने जयपुर राज्य की सीमा के भीतर एक स्थान पर अपनी सेना का मुकाम किया और विजय के उल्लास में गौरव अनुभव करने के लिए वह अकेला जयपुर चला गया। राठौड़ सामन्तों के साथ अमीर खाँ पीपलू नामक स्थान पर पहुँच गया था। वहीं उसने सुना कि शिवलाल अपनी सेना को अकेली छोड़कर जयपुर चला गया है । इस अवसर का लाभ उठाने की उसने चेष्टा की । उसके साथ की सेना युद्ध करने के लिए काफी न थी। इन दिनों में मोहम्मद खाँ और राजा वहादुर की सेनायें ईसरदा को घेरे हुए पड़ी थीं। अमीर खाँ उन दोनों नेताओं को मिलाकर हैदरावादी रिसाला दल में पहुँचा। यह दल इन दिनों में लूटमार के लिए बहुत कुख्यात हो रहा था। अमीर खाँ ने उसको भी अपने साथ मिला लिया और एक शक्तिशाली सेना बनाकर उसने शिवलाल की सेना पर आक्रमण किया। जयपुर की वह सेना इस समय विना सेनापति के थी और सेनापति के अभाव में कोई भी फौज युद्ध नहीं कर सकती । फिर भी उस सेना ने पूरे तौर पर आक्रमणकारियों का सामना किया। वे युद्ध से पीछे नहीं हटे और अंत में वे सव पराजित होकर मारे गये। अमीर खाँ की विजयी सेना ने पराजित सेना के शिविर में जाकर वहाँ की समस्त युद्ध सामग्री को अपने अधिकार में कर लिया। जगतसिंह की विशाल सेना छः महीने तक जोधपुर के दुर्ग को घेरे हुए पड़ी रही। दुर्ग में प्रवेश करने की सफलता उसको न मिली। इन छ: महीनों में खाने-पीने व वेतन सम्बन्धी कठिनाइयाँ भयानक रूप से उसकी सेना के सामने पैदा हो गयी। जो सेनायें जयपुर की सहायता में जोधपुर आयी थीं उनके पदाधिकारियों का मतभेद भी सवाईसिंह और जगतसिंह के साथ पैदा हुआ। यह झगड़ा धीरे-धीरे बढ़ने लगा और आपसी असंतोष के कठोर हो जाने के कारण वीकानेर और शाहपुर के राजा जोधपुर छोड़कर अपने-अपने राज्य को चले गये। परन्तु सवाईसिंह और जगतसिंह को उनके चले जाने पर किसी प्रकार की चिन्ता नहीं हुई। इसी अवसर पर उनको मालूम हुआ कि अमीर खाँ को दमन करने के लिए सेनापति शिवलाल के नेतृत्व में जो सेना भेजी गयी थी, भयानक रूप से उसका विनाश हुआ है। सवाईसिंह को यह समाचार पहले से ही मालूम हो चुका था। लेकिन उसने जगतसिंह को जाहिर नहीं दिया था और जयपुर के दीवान रामचन्द को रिश्वत देकर उसने रोका था कि यह समाचार जगतसिंह को मालूम न होने पावे। उसका विश्वास था कि इस समाचार को सुनते ही जगतसिंह अपनी सैना लेकर जयपुर चला जायेगा और उसके चले जाने पर मानसिंह के विरुद्ध वह सफल न होगा। 499