पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४६६

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4. सामन्तों ने निरंकुश होकर राज्य के अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया है, बुद्धिमानी के साथ उनकी व्यवस्था करना। राजा मानसिंह ने अपने राज्य में बारह महीने के भीतर सुधार कर लेने पर विश्वास किया था। उसके अनुसार राज्य में कुछ नये कार्य आरंभ किये गये। गोडवाड राज्य का घाणेराव एक प्रधान नगर था। उसे राज्य में मिला लिया गया और एक वर्ष की उसकी आमदनी को लेकर उसे छोड़ दिया गया। घाणेराव के सामन्त ने इस दंड का रुपया अपने अधीन सरदारों से वसूल किया और अपनी प्रजा पर कर बढ़ाकर उसने बड़ी कठोरता से काम लिया। इस प्रकार के और भी कितने ही कार्य किये गये, जिनके कारण सामन्तों और सरदारों में असंतोष की वृद्धि हुई। कुछ सामन्तों ने इसका विरोध करते हुए स्वाभिमान के साथ अनेक प्रकार की बातें कही। जोधपुर के प्रधानमंत्री अखय चंद ने राज्य के प्रत्येक भाग में इस प्रकार के कार्य किये, जिनसे राज्य में और भी असंतोष की वृद्धि हुई। इन अत्याचारों को देखकर राज्य के कुछ सामन्त भविष्य में आने वाली विपदाओं का अनुमान लगाने लगे। उनको विश्वास हो गया कि प्रधानमंत्री अखय चन्द कुछ सामन्तों को मिलाकर राज्य का विनाश करने के लिए तैयारी कर रहा है। प्रधानमंत्री के इन अत्याचारों को देखकर मानसिंह ने शासन की व्यवस्था से फिर अपने आपको अलग कर लिया और एकान्तवासी बनकर वह फिर अपने जीवन के दिन व्यतीत करने लगा। उसकी इस दशा को देखकर अनेक सामन्त भयभीत हो उठे। इन्हीं दिनों में प्रधानमंत्री अखय चन्द के साथ फतहराज का वैमनस्य आरंभ हुआ। राजा मानसिंह की सहानुभूति फतहराज के साथ अधिक थी और बहुत कुछ उसका प्रिय बन गया था। इसके अतिरिक्त मानसिंह की रानी फतहराज के साथ उदारता का व्यवहार करती थी और इसलिए राज्य के अनेक सामन्तों के साथ फतहराज की मैत्री थी। परन्तु प्रधान मंत्री अख्य चन्द राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी था। उसने बड़ी बुद्धिमानी के साथ राज्य की सेना को अपने अधिकार में कर लिया और जोधपुर के दुर्ग के साथ-साथ राज्य के सभी दुर्गों पर उसने अपना आधिपत्य कायम कर लिया। अखय चन्द की इस शक्ति को देखकर फतहराज का साहस निर्बल पड़ने लगा। अखय चन्द इस बात को समझता था कि फतहराज कुछ नहीं कर सकता। इसलिए निर्भीक होकर उसने राज्य में भयानक अत्याचार आरंभ किये। इन्हीं दिनों में अखय चन्द ने कई बार फतहराज का अपमान भी किया। इसलिए विवश होकर वह अखय चन्द के विरुद्ध उस षड़यंत्र का एक जाल तैयार करने लगा। राज्य में अखय चन्द के अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे थे। प्रजा को लूटकर उसने अपने पास अपरिमित सम्पत्ति एकत्रित कर ली थी। जो सामन्त और सरदार उसके अत्याचारों में शामिल थे उन्होंने भी राज्य को लूटने में कोई कमी न की थी। इसके बाद अखय चन्द जोधपुर के दुर्ग में जाकर रहने लगा। उसने यह अफवाह फैला दी कि राज्य में मेरे लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है, इसीलिए नगर छोड़कर मैं दुर्ग चला आया हूँ। इस प्रकार छः महीने बीत गये। राजा मानसिंह का एकान्त जीवन चल रहा था और राज्य में अखय चन्द का आधिपत्य काम कर रहा था। एकाएक मानसिंह ने अपना एकान्त जीवन भंग किया और शासन की बागडोर अपने हाथों में लेकर उसने अखय चुन्द एवम् उसके समर्थक सामन्तों और सरदारों को राजधानी में बुलाया। अखय चन्द और उसके समर्थकों के आते ही मानसिंह ने आदेश दिया, वे सब के सब कैद कर लिए गये और उसी समय मानसिंह ने अखय चन्द से कहा :-“तुमने राज्य को लूटकर जितनी सम्पत्ति एकत्रित की है, उसे साफ जाहिर करो। अन्यथा तुमको प्राण दंड दिया जायेगा।" 512