पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४९९

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सूरतसिंह ने अनेक उपायों से अपनी वहन को अनुकूल बनाने की कोशिश की। उसने समझाने-बुझाने के अतिरिक्त प्रताड़ना का भी प्रयोग किया। परन्तु उसकी वहन पर उसके इन व्यवहारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अपने इन उपायों से निराश होने के वाद सूरतसिंह ने अपनी उस वहन का विवाह करके उसे ससुराल भेज देने का निश्चय किया। क्योंकि उसकी वह वहन अभी तक अविवाहिता थी। सूरतसिंह ने उसका विवाह करने के लिए नरवर के राजा के पास प्रस्ताव भेजा और वह स्वयं उसकी तैयारी करने लगा। भारतवर्ष में राजा नल के नाम से सभी परिचित हैं। हिन्दू ग्रंथों में राजा नल की वहुत सी कथायें लिखी गयी हैं। उसी राजा नल ने नरवर राज्य की प्रतिष्ठा की। सूरतसिंह ने अपनी बहन का विवाह करने के लिए जिस राजा से प्रस्ताव किया वह राजा नल का वंशज था। सिंधिया के अत्याचारों से नरवर राज्य विल्कुल नष्ट-भ्रष्ट हो गया था और इन दिनों में उस राज्य की दशा अच्छी न थी। सिंधिया की लूट के कारण यह राज्य बहुत समय से दीन-दुर्वल अवस्था में दिन व्यतीत कर रहा था। लेकिन सूरतसिंह ने इसका कुछ भी विचार न किया। वह अपनी उस वहन का विवाह बड़ी जल्दवाजी के साथ करके उसे ससुराल भेज देना चाहता था। अपने विवाह का समाचार सूरतसिंह की वहन ने सुना और उसने यह भी सुना कि सूरतसिंह ने नरवर के जिस राजा के साथ मेरे विवाह का प्रस्ताव किया है, उसने उस प्रस्ताव को मंजूर करके अपनी स्वीकृति सूरतसिंह के पास भेज दी है। राजकुमारी ने सूरतसिंह को बुलाकर प्रार्थना की कि मेरी अवस्था अधिक हो चुकी है। विवाह न करके मैं आजन्म कुँवारी रहूँगी। इसलिए आप मेरे विवाह की व्यवस्था न करें। इसके वाद राजकुमारी ने नरवर के राजा के पास भी संदेश भेजा कि मेरा विवाह मेवाड़ के राणा अरिसिंह के साथ बहुत पहले निश्चित हो चुका है। इसलिए आप से जो प्रस्ताव किया गया है, वह सही नहीं हैं। आपको किसी धोखे में नहीं पड़ना चाहिए। राजकुमारी के इन विरोधों का कोई परिणाम न निकला। नरवर के राजा के साथ उसका विवाह कर दिया गया और सूरतसिंह ने इस विवाह के दहेज में तीन लाख रुपये दिये। राजकुमारी का अब कोई वश न था। उसने अब तक राजसिंह के बालक की रक्षा की थी। भविष्य में वह कैसे सुरक्षित रहेगा, इसको वह समझ न सकी। बीकानेर से ससुराल जाने के पहले राजकुमारी ने सूरतसिंह से इस विषय में स्पष्ट बातें की। उसने कहा-"इस बालक के साथ आप विश्वासघात करना चाहते हैं और इसीलिए मेरा विवाह करके बीकानेर से मुझे भेज देने का आपने एक रास्ता खोला है। अव तक मैंने उस बालक की रक्षा की थी। भविष्य में भगवान उसकी रक्षा करेगा।" बहन की इन वातों को सुनकर सूरतसिंह के ऊपर कोई प्रभाव न पड़ा। प्रकट रूप में उसको सान्त्वना देने के लिए उसने कहा कि ऐसी वात बिल्कुल नहीं है। तुम्हारा अनुमान विल्कुल निराधार है। सूरतसिंह के मुख से इस बात को सुनकर राजकुमारी ने साहसपूर्ण शब्दों में कहा- "वास्तव में यदि आपके हृदय में उस वालक के प्रति इस प्रकार का विश्वासघात नहीं है तो सवं के सामने अपने देवता की शपथ लेकर कहिए कि मैं अपने इस भतीजे के साथ किसी प्रकार का विश्वासघात न करूँगा।" - 545