दो शाखायें कौशल देश से निकली हैं। उनमें से एक ने सोन नदी के किनारे रोहतास की स्थापना की और दूसरी लाहर के पास जाकर कोहारी के दरों में रहने लगी। दसवीं शताब्दी में एक शाखा ने अपने स्थान से चलकर बड़गूजर जाति के राजपूतों से राजोर और उसके आस-पास के इलाकों को लेकर आँबेर की स्थापना की। बारहवीं शताब्दी के अंत में भी कुशवाहा वंश के लोग दिल्ली राज्य के सामन्तों में थे। राजस्थान के दूसरे वंशों का जब पतन आरंभ हुआ, उस समय से कुशवाहा वंश की उन्नति आरंभ हुई। कुशवाहा वंश भी बारह भागों में विभाजित हुआ और ये भाग कोठारियों के नाम से प्रसिद्ध हुए, उनका वर्णन आगे किया जायेगा। अग्निकुल अथवा वंश राजपूतों में चार वंश ऐसे हैं, जिनकी उत्पत्ति अग्नि से बतायी जाती है। परमार, परिहार, चालुकू अथवा सोलंकी और चौहान-इस प्रकार चार वंश अग्निवंशी कहे जाते हैं। अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बंध में अनेक प्रकार की कथाओं के उल्लेख मिलते हैं। उनका ऐतिहासिक सत्य इतना ही है कि जिस समय ब्राह्मणों के द्वारा अगणित देवी-देवताओं की पूजा का प्रचार बढ़ रहा था, बौद्धधर्म ने उसका विरोध किया और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार किया। उस समय ब्राह्मणों ने बौद्धधर्मी लोगों के विरोध का निर्णय किया और इसके लिये आबू की चोटी पर अग्निकुंड बनाकर जिनको संस्कार करके बौद्ध धर्म के विरुद्ध युद्ध करने के लिये तैयार किया, उन राजपूतों की उत्पत्ति अग्नि से मानी गयी और उसी समय से वे और उनके वंशज अग्निवंशी कहलाये। परमार वंश से पैंतीस शाखाओं की उत्पत्ति हुई और बहुत बड़े विस्तार में उन लोगों ने राज्य किया। उनके विस्तार के कारण ही अब तक लोग कहा करते हैं कि पृथ्वी परमारों की है। परमारों के द्वारा जो राज्य जीते गये अथवा बसाये गये, उनमें माहेश्वर, धार, मांडू, उज्जैन, चंद्रभागा, चित्तौड़, आबू, चन्द्रावती, मऊमैदाना, परभावती, उमरकोट, बेखर, लोद्रवा और पट्टन अधिक प्रसिद्ध हैं। परमार वंश के लोग सम्पत्ति में अनहिलवाड़ा के समान और प्रताप में राजपूतों की तरह के न थे, परन्तु राज्य के विस्तार में उनकी ख्याति अधिक थी। ऐसा मालूम होता है कि हय अथवा हैहयवंश के राजाओं की प्राचीन राजधानी माहेश्वर, परमार राजपूतों की पहली राजधानी थी। परमार राजपूतों के राज्य की सीमा नर्मदा तक ही न थी, बल्कि राम नामक परमार राजा का राज्य तिलंगाना में भी था और चौहान राजाओं का भाट चंद्र उसे भारत के सम्राट होने की पदवी देता था। लेकिन राम के उत्तराधिकारी अपने अधिकारों की रक्षा के लिये काफी न थे। इसीलिये उनसे चितौड़ का राज्य गहलोत राजपूतों के द्वारा छीन लिया गया था। परमार राजपूतों में राजा भोज का नाम बहुत प्रसिद्ध है। भारत में भोज नाम के कई राजा हुए हैं। लेकिन परमारों में इस नाम का एक ही राजा हुआ है, जिसने बहुत ख्याति प्राप्त की थी। सिकन्दर का प्रतिद्वन्द्वी चन्द्रगुप्त मौर्य वंश का था पुराणों में उसको तक्षक वंशी लिखा गया है। परमारों की अनेक शाखायें हैं, मोरीवंश उसकी एक मुख्य शाखा है। इस वंश को तुष्टा अथवा तक्षक भी लिखा गया है। विक्रमादित्य को पराजित करने वाला शालिवाहन तक्षकवंशी था। परमार राजपूतों के महत्त्व को प्रकट करने वाले अब उनके खंडहर ही बाकी रह गये हैं। इस देश की मरुभूमि में घाट का राजा इस वंश का अंतिम राजा था। वह सोढा कुल में पैदा हुआ था, यह कुल परमार राजपूतों की एक प्रसिद्ध शाखा थी। इसी घाट के राजा के एक वंशज ने हुमायूँ को अपनी राजधानी अमरकोट में उस समय शरण दी थी, जब वह तैमूर के राजसिंहासन से . 50
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