पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चामुंडराय के शासन काल में महमूद गजनवी अपनी सेना अनहिलवाड़ा में ले गया और उसने वहाँ पर अपरिमित सम्पत्ति की लूट की । चौहानों का एक वंशज कुमारपाल सोलंकियों के वंश का उत्तराधिकारी बना। सोलंकी वंश सोलह शाखाओं में इस प्रकार विभाजित है - (1) बघेल - बघेलखंड के राजा, जिसकी राजधानी बाँधगढ़ थी, पीथापुर, थराद और अदलज आदि के सरदार। (2) बीरपुरा - लूणावाड़ा के सरदार । (3) बेहिल - मेवाड़ के अंतर्गत कल्याणपुर के जागीरदार। (4) भूरता। (5) कालेचा- जैसलमेर के अंतर्गत बारू टेकरा और चाहिर में। (6) लंघा- मुल्तान के निकट रहने वाले मुसलमान । (7) तोगरू - पंचनद प्रदेश के निवासी मुसलमान । (8) ब्रिकू - पंचनद प्रदेश के निवासी मुसलमान । (9) सोलके - दक्षिण में पाये जाते हैं। (10) खिरिया - सौराष्ट्र प्रदेश के अंतर्गत गिरनार में रहते हैं। (11) राओका - जयपुर के अंतर्गत टोडा के हलके में रहते हैं। (12) राणकरा - मेवाड़ के अंतर्गत देसूरी में रहते हैं। (13) खरूरा मालवा देश में आलोट और जावरा के रहने वाले हैं। (14) तौतिया - चन्दभूड सकुनबरी । (15) अलमेचा - इनका कोई स्थान नहीं है। (16) कुलमोर - गुजरात के रहने वाले हैं। प्रथिहार अथवा परिहार - अग्निवंश का यह वंश है, जिसके सम्बंध में ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम प्राप्त हो सकी है। राजस्थान के इतिहास में परिहारों का कोई भी ख्यातिपूर्ण कार्य नहीं है और दिल्ली के तोमर राजपूतों तथा अजमेर के चौहानों के यहाँ इस वंश के लोग सदा जागीरदार होकर रहे हैं। मंडोवर जिसे संस्कृत में मन्दोद्री कहते हैं- परिहार राजपूतों की राजधानी थी। मारवाड़ का यह एक प्रसिद्ध नगर था। इस नगर में राठौड़ राजपूतों के आक्रमण के पहले, इस वंश के लोगों का अधिकार था। यह नगर आधुनिक जोधपुर की ओर पाँच मील की दूरी पर बसा हुआ है ।तथा मंडोर कहलाता है। कनौज के राठौड़ राजा कन्नौज से भागकर परिहारों के यहाँ आये और शरण पायो । लेकिन इस उपकार का बदला उन लोगों ने विश्वासघात के द्वारा दिया और चूड़ा नाम के एक राठौड़ राजा ने परिहारों के अंतिम राजा का राज्य छीन कर अपना अधिकार कर लिया। उसके बाद उसने मंडोवर के किले पर राठौड़ वंश का झंडा लगा दिया। परिहार वंश के लोग सम्पूर्ण राजस्थान में फैले हुए हैं। परन्तु उनके अधिकार में किसी स्वतंत्र जागीर का कहीं उल्लेख नहीं मिला। कोहारी, सिन्धु और चम्बल नदियों का जहाँ पर संगम होता है, वहाँ पर इस वंश वालों की आबादी है और आस-पास के छोटे-बड़े अनेक गाँव उनसे बसे हुये हैं। परिहारों की बारह शाखायें थीं, इनमें ईदा और सिन्धल नाम 53