इसी जाति के लोग हैं। सिन्धु नदी के उस पार जो जातियाँ आवाद हैं और जो मुसलमान हो गई हैं, वे सभी पहले जाट वंश की थीं। एक समय था, जब जेटी का राज्य बहुत प्रसिद्ध था और साइरस के समय से लेकर चौदह शताब्दी तक उसकी बहुत ख्याति रही। उसकी राजधानी जग जार्टीज नदी के किनारे थी। इस जाति ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। चीनी ग्रंथकारों के अनुसार, इस जाति के लोग बहुत पहले बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जिट जाति के सम्बंध में अनेक प्रकार की बातें हैं। उनके रहने के स्थान सिन्धु नदी के पश्चिम ओर के देश माने जाते हैं और यदुवंश से उनकी उत्पत्ति मानी जाती है। यह पहले ही लिखा जा चुका है कि जिट और तक्षक वे जातियाँ हैं, जिनसे होने वाली विभिन्न उपजातियों ने भारत पर आक्रमण किया था। इसके साथ-साथ पाँचवी शताब्दी का एक शिलालेख मिला है। उससे मालूम होता हैं कि एक ही जाति के ये नाम हैं। उस शिलालेख से यह भी मालूम होता है कि इस जाति का राजा सूर्य की उपासना करता था, जैसे कि सीथियन लोग करते थे। उसमें यह भी लिखा है कि जिट वंशी राजा की माता यदुवंश में पैदा हुई थी। इससे जाहिर होता है कि इस जाति के यदुवंशी होने का दावा सही है। डिगिग्नीज़ ग्रंथकार का कहना है कि यूची अथवा जिट लोग पाँचवी और छठी शताब्दी में पंजाब में रहते थे और इस वंश के जिस राजा का ऊपर उल्लेख किया गया है, उसकी राजधानी सालिन्द्रपुर के नाम से मशहूर थी। इससे जाहिर होता है कि सालिवाहनपुर का ही नाम किसी समय सालिन्द्रपुर था, जहाँ यदुवंशी भाटियों ने टाँक लोगों को पराजित करके अपना अधिकार कर लिया था। इसके कितने पहले जिट लोगों ने राजस्थान में प्रवेश किया था, इसका निर्णय शिलालेखों के आधार पर ही किया जा सकता है । यह तो मानी हुई बात है कि सन् 440 ईसवी में उनका शासन चल रहा था। जव यादव जाति के लोग सालिवाहन से भागे तो उन लोगों ने सतलुज नदी पार करके भारत की मरुभूमि में दहिया और जोहिया राजपूतों के यहाँ शरण ली और यहाँ पर उन्होंने अपनी पहली राजधानी देवराल में स्थापित की। उनमें से बहुत से लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उसी समय से वे लोग जाट कहे गये, जिनकी वीस से अधिक शाखाओं का उल्लेख यदुवंश के इतिहास में किया गया है। जिट लोगों के सम्बंध में बहुत-सी काम की बातें भारत विजेता महमूद के इतिहास में पढ़ने को मिलती हैं। महमूद की सेना सन् 1026 ईसवी में आक्रमण करने के लिए भारत की तरफ बढ़ी। उस समय जिट लोगों ने उसे रोक कर उसके साथ युद्ध किया। वह वर्णन इस प्रकार है - जिट लोग मुल्तान की सीमा के नजदीक उस नदी के किनारे रहते थे, जो जौद के पहाड़ों के निकट से होकर प्रवाहित होती है । जव महमूद मुल्तान वहाँ पहुँचा तो उसने कई विशाल नदियों से सुरक्षित जिट लोगों के प्रदेश का अध्ययन किया। उसने पन्द्रह सौ नावें तैयार की। उन नावों में प्रत्येक के आगे नोकदार लोहे के मजबूत और मोटे ऐसे डंडे लगे हुए थे, जिनसे शत्रु नावों के निकट आकर आक्रमण न कर सके। क्योंकि इस प्रकार की लड़ाई में जिट लोग बहुत होशियार थे। प्रत्येक नाव पर बीस धनुष बाण लिए सैनिकों को खड़ा कर दिया और महमूद की सेना परिणाम देखने के लिए इंतजार करने लगी। जिट 56
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