सळ अथवा सरिअस्प - बहुत पहले इस वंश के प्रसिद्ध होने का पता चलता है। भाटों के द्वारा वह क्षत्रिय माना जाता है। सिलार अथवा सुलार - इनके सम्बंध में भी अधिक बातें नहीं मिलती। लार जाति किसी समय सौराष्ट्र में थी। अनहिलवाड़ा के इतिहास से मालूम होता है कि प्रसिद्ध राजा जयसिंह ने उन लोगों को जो इस जाति से सम्बंध रखते थे, अपने राज्य से निकाल दिया था। इसलिए सिलार अथवा सुलार जाति लार जाति मालूम होती है। कुमारपाल चरित्र में उसको राजकुमार लिखा गया है लेकिन अब यह जाति वैश्यों में मानी जाती है और यह बौद्ध धर्म को मानती है। उसकी चौरासी शाखाओं में एक यह लार भी है। इन चौरासी शाखाओं में कुछ के राजपूतों से निकलने के उल्लेख भी कहीं-कहीं पाये जाते हैं। डाबी- इस जाति के सम्बंध में कुछ भी नहीं मिलता। यद्यपि किसी समय सौराष्ट्र में इस जाति के लोग रहते थे। कुछ लोगों के अनुसार यह यदुवंश की एक शाखा है। गौड़ - एक समय था जब इस जाति की प्रतिष्ठा राजस्थान में थी। लेकिन इसने कभी उन्नति नहीं की। बंगाल के प्राचीन राजा इसी जाति के माने जाते थे और उन्हीं के नाम से उनकी राजधानी का नाम लखनौती पड़ा था। सिन्धिया ने 1809 ईसवी में गौड़वंश के अधिकारों को छीन लिया था। इस प्रकार की बहुत थोड़ी बातें इसके सम्बंध में पढ़ने को मिलती हैं । इस जाति की पाँच शाखायें हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- अंतहिर, सिलाहाल, तूर, दुसना, वोडाना। डोड अथवा डोडा इस वंश के सम्बंध में केवल इतना कहा जा सकता है कि राजपूतों की वंशावलियों में उसका नाम है। गेहरवाल इस जाति के राजपूतों को राजस्थान के लोग राजपूत मानने के लिए तैयार नहीं होते। इस जाति का मौलिक स्थान काशी का प्राचीन राज्य है। इसके पूर्वजों में खोरतजदेव कोई हुआ है। उसकी सातवीं पीढ़ी में जेसन्द ने विन्धवासिनी देवी के स्थान पर एक यज्ञ किया था और बुन्देला की उपाधि धारण की थी। उसी के आधार पर बुन्देलखंड प्रदेश का नाम अब तक प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में कालींजर, मोहिनी और महोबा प्रसिद्ध नगर हैं। चन्देल-ये पहले बुन्देलखंड के प्राचीन निवासी थे, और राजस्थान के छत्तीस राजवंशों में माने जाते हैं। ये लोग बारहवीं शताब्दी में अपनी शक्ति के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उस समय उनके अधिकार में वह सारा देश था जो जमुना और नर्बदा नदी के बीच में है और जिस पर अब बुन्देलों और बघेलों का अधिकार है । पृथ्वीराज के साथ चन्देलों की युद्ध में पराजय हुई थी और वहीं से गहरवाल लोगों को विजय का द्वार खुल गया था । अकबर के समय से लेकर मुग़लों के अंत तक बुन्देलों ने सभी प्रसिद्ध लड़ाइयों में वहादुरी के साथ युद्ध किया था । बुन्देला राज्यों में ओर्छा का राज्य अधिक प्रसिद्ध रहा । आजकल बुन्देला वंश के लोगों की संख्या बहुत अधिक है और गेहरवाल नाम उनके निवास स्थानों में ही रह गया है। बड़गूजर - यह वंश सूर्यवंशी है और इस वंश के लोग रामचन्द्र के बड़े पुत्र लव का अपने आपको वंशज कहते हैं । इन लोगों के इलाके ढूंढाड़ में थे और माचेड़ी राज्य में राजौर का पहाड़ी किला उनकी राजधानी था। राजगढ़ और अलवर भी उनके इलाकों में थे। कछवाहों ने उनको उनके स्थानों से भगा दिया था, जिससे उस वंश के कुछ लोगों ने गंगा के किनारे रहना आरंभ किया था और वहाँ पर उन्होंने अनूप शहर बसाया था। 60
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