पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/६७

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सीसोदिया वंश की प्रशंसा लिखी है। इंग्लैंड की महारानी एलिजावेथ के शासन काल में सर टामसरो भारत में दूत बनकर आया था। उसने यहाँ के राजपूतों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। मारवाड़ की राजपूत जातियों में राठौड़ राजपूतों का सम्मानपूर्ण स्थान है। लेकिन सीसोदिया वंश के लोगों के सम्बंध में जितनी आजादी के साथ मैं लिख सकता हूँ, उतनी आजादी के साथ राठौड़ राजपूतों के सम्बंध में लिखने का मैं अधिकारी नहीं हूँ फिर भी मैं इतना तो जानता हूँ कि जिन दिनों में फ्रांस के लोग भारत में अपना स्थान बना रहे थे, यहाँ के राठौड़ राजपूत उन दिनों में अत्यंत शक्तिशाली थे और उनका शासन बहुत दूर तक फैला हुआ था। बारहवीं शताब्दी में उनके विस्तृत राज्य का पतन हुआ और उसके बाद इस वंश का शासन मारवाड़ में केन्द्रित होकर रहा। आमेर के कछवाहे - प्राचीन काल में निषध नामक राजपूतों का जो एक प्रसिद्ध राज्य था और जो आजकल नरवर के नाम से मशहूर है, राजा नल और रानी दमयंती ने जिनकी कथायें सर्वसाधारण में बहुत प्रचलित हैं (संदर्भ) इसी वंश में जन्म लिया था। बाहरी आक्रमणों के कारण इस वंश के लोगों को अपना पैतृक राज्य छोड़ना पड़ा था। उस समय भारतवर्ष में चार प्रधान राज्य थे। अरब के प्रसिद्ध यात्री ने उन चारों राज्यों के सम्बंध में जो कुछ लिखा है, उनके द्वारा उन राज्यों का हमको परिचय मिलता है। मेवाड़ का सीसोदिया वंश राजस्थान के राज्यों में मेवाड़ का स्थान अधिक सम्मानपूर्ण है और सम्पूर्ण राजपूत जातियों में सीसोदिया वंश का स्थान ऊँचा है । मेवाड़ की राजनीति, समाजनीति और शासन व्यवस्था यहाँ के अन्यान्य राज्यों से बिल्कुल भिन्न है। राजस्थान के दूसरे राज्य जब कोई विशेष स्थान न रखते थे, मेवाड़ का राज्य उस समय इस देश में विख्यात हो रहा था। सीसोदिया वंश के स्वाभिमानी राणा लोगों ने आक्रमणकारियों के साथ बहुत समय तक युद्ध किया। उन्होंने जीवन की भयानक कठिनाइयों का सामना किया परन्तु वे अपनी स्वाधीनता को नष्ट करने के लिए तैयार न हुए। सीसोदिया वंश की सबसे बड़ी प्रशंसा यह थी कि इस वंश का कोई भी राणा अवसरवादी न था। मुग़ल साम्राज्य के पतन के दिनों में उसके बहुत से अधीन राज्यों ने लाभ उठाया था। साम्राज्य के छोटे-छोटे राजा और सामन्त विद्रोह करके स्वतंत्र हो गये थे। मारवाड़, आमेर और राजस्थान के दूसरे राज्यों ने भी उस मौके का लाभ उठाया था। उन्होंने अपने राज्यों की सीमा बढ़ा ली थी और मुग़लों के साथ विद्रोह करके अपनी स्वाधीनता की घोषणा की थी। परन्तु मेवाड़ के सीसोदिया वंश ने इस अवसर पर कोई लाभ नहीं उठाया था। परिवर्तन और पतन के दिनों में भी राजपूतों ने अपने पूर्वजों के गौरव को नहीं भुलाया। उन्होंने जिस प्रकार श्रेष्ठ वंशों में जन्म लिया है, अनेक विपदाओं में आकर भी उन्होंने उनकी श्रेष्ठता की रक्षा की है। उनके मनोभावों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, यद्यपि उनके जीवन की परिस्थितियों में भयानक अंतर आ चुका है। मेवाड़ राज्य के प्राचीन पुरुष, जिस प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे और भयानक विपदाओं के समय भी वे अपना मस्तक नीचा न करते थे, उनके वंशजों में पूर्वजों के वे गुण और स्वभाव आज भी देखने को मिलते हैं। मेवाड़ की राजपताका लाल रंग की है और उस पताका पर सूर्य की आकृति अंकित रहती है। मेवाड़ के सामन्तों की पताकायें, मेवाड़ की पताका से भिन्न रहती हैं। आम्बेर की - .. 67