पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/७६

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। मेवाड़ में चूंडावत व शक्तावत बहुत समय तक एक दूसरे के शत्रु बने रहे । उनके वैर विरोध के कारण राणा की शक्तियाँ दुर्बल होती गयीं। उन पर राणा का आतंक काम न कर सका। दोनों ही वंशों के सरदार समय-समय पर राणा की आज्ञाओं का उल्लंघन कर देते थे। इन दोनों वंशों की आपसी शत्रुता के कारण राणा निर्वल होता गया और वह बाहरी शत्रुओं का सामना कर सकने में असफल रहा। जिस समय मुगल सम्राट जहाँगीर ने मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था और राणा को वहां से भाग जाना पड़ा था, उस समय राणा ने सब सामन्तों को एकत्रित करके परामर्श किया। युद्ध में चूंण्डावत वंश के सरदार अपनी सेना लेकर आगे-आगे चला करते थे। वहाँ पर इस अधिकार को बहुत महानता दी जाती थी। इस अधिकार को मेवाड़ में हरावल को कहा जाता था। इसका अर्थ होता है, सेना के आगे चलने का अधिकार । यह बहुत सम्मानपूर्ण समझा जाता है । शक्तावत सरदार युद्ध में किसी प्रकार चूंण्डावतों से निर्बल न थे। इसीलिये शक्तावत सरदारों ने इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए कोशिश की। चूण्डावत सरदारों ने शक्तावतों का विरोध किया। उनका कहना था कि ये अधिकार और सम्मान सदा से हमको मिला है। इसलिए इस अधिकार को प्राप्त करने वाला कोई दूसरा नहीं हो सकता। यह विवाद दोनों वंशों के सरदारों में बढ़ने लगा और अंत में वे दोनों अपनी-अपनी तलवारें लेकर एक दूसरे पर आक्रमण कर बैठे । जब इस अधिकार का निर्णय वे स्वयं दोनों करने लगे और एक दूसरे के सर्वनाश करने के लिए तैयार हो गये तो राणा के सामने बड़ा असमंजस पैदा हुआ। उस भयानक परिस्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए राणा ने दोनों वंशों के सरदारों से कहा - "इस अधिकार के लिए आप लोग आपस में युद्ध न करें। हमारे सामने अन्तला नामक स्थान को अधिकार में लाने का प्रश्न है। जो अन्तला के दुर्ग में पहले प्रवेश कर सकेगा, वही हरावल को प्राप्त करने का अधिकारी माना जायेगा।" राणा के इस निर्णय को दोनों वंशों के लोगों ने स्वीकार कर लिया और उसी समय दोनों वंशों के सरदार अपने-अपने सैनिकों के साथ अन्तला दुर्ग की तरफ रवाना हो गये। राजधानी उदयपुर से पूर्व की तरफ अन्तला दुर्ग नौ कोस की दूरी पर है। वहाँ से चित्तौड़ की तरफ एक पुराना रास्ता गया है। यह दुर्ग जमीन की सतह से कुछ ऊँचाई पर बना हुआ है। उसकी रक्षा के लिए पत्थर का बना हुआ उसका घेरा बहुत मजबूत है। उसके भीतर अनेक महल बने हुए हैं। दुर्ग के नीचे एक नदी प्रवाहित होती है। दुर्ग के भीतर उसके शासक के रहने का जो महल बना है, उसकी दीवारें भी मजबूत बनी हुई हैं। इस दुर्ग में प्रवेश करने के लिए केवल एक ही द्वार है। शक्तावत सरदारों ने बहुत तेजी के साथ दुर्ग के पास पहुँचने की चेष्टा की। वे लोग सूर्य निकलने के पहले ही वहाँ पहुँच गये। उनके पहुंचने का समाचार किसी प्रकार दुर्ग के मुसलमान सैनिकों को मिल गया। वे युद्ध के लिए तैयार होकर दुर्ग के ऊपर एक सुरक्षित स्थान पर एकत्रित हो गये। 1. यह दुर्ग इन दिनों में बिल्कुल नष्ट हो गया है। लेकिन उस दुर्ग की ऊँची चोटी के महल और दुर्ग के कुछ हिस्से अब भी टूटी-फूटी दशा में पाये जाते हैं। उनको देखकर हर बात का अनुमान किया जा सकता है कि वह दुर्ग किसी समय बहुत मजबूत बना हुआ था। 76