सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पथ और पाथेय।
१५९


भापका बल ही बढ़ाते रहते हैं । जब पूछा जाता है कि रास्ता साफ करने और पटरियाँ बिछानेका काम कौन करेगा, तब हमारा जवाब होता है—इन फुटकर कामोंको लेकर दिमाग खराब करना फजूल है- समय आनेपर सब कुछ अपने आप ही हो जायगा । मजदूरका काम मजदूर ही करेगा; हम जब ड्राइवर हैं तब इंजिनमें स्टीम ही बढ़ाते रहना हमारा कर्तव्य है

अब तक जो लोग सहिष्णुता रख सके हैं, संभव है कि वे हमसे पूछ बैठे कि-"तब क्या बंगालक सर्वसाधारण लोगोंमें जो उत्तेज- नाका उद्रेक हुआ है, उससे किसी भी अच्छे फलकी आशा नहीं की जा सकती!"

नहीं, हम ऐसा कभी नहीं समझते । अचेतन शक्तिको सचेष्ट या सचेतन करने के लिये इस उत्तेजनाकी आवश्यकता थी। पर जगा कर उठा देनेके अनन्तर और क्या कर्तव्य है ! कार्यमें नियुक्त करना या शराबमें मस्त करके मतवाला कर देना ? शराबकी जितनी मात्रा क्षीण प्राणको कार्यक्षम बनाती है उससे अधिक मात्रा फिर उसकी कार्य- क्षमता नष्ट कर देती है। सत्य कर्ममें जिस धैर्य और अध्यवसायका प्रयोजन होता है मतवालेकी शक्ति और रुचि उससे विमुख हो जाती है। धीरे धीरे उत्तेजना ही उसका लक्ष्य हो जाती है और वह विवश होकर कार्यके नामपर ऐसे अकार्योंकी सृष्टि करने लगता है जो उसकी मत्तताहीकी अनुकूलता करते हैं। इस सारे उत्पात कर्मको वस्तुतः वह मादकता बढ़ानेका निमित्त समझकर ही करता है और इनके द्वारा उत्तेजनाकी मात्राको घटने नहीं देता। मनोवेग जब का- र्य्योमें मार्गसे बाहर निकलनेका रास्ता नहीं पाता, और भीतर ही भीतर सञ्चित और अद्धित होता रहता है तब वह विषका काम करता है,