पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१२१

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. 1 में आज से कोई २६०० वर्ष पूर्व लिखा गया है। इस समय यह ग्रंथ तीन पाठों में उपलब्ध है। यद्यपि तीनों पाठों में सूर्यवंश की प्राचीन वंशावली का कुछ भाग थोड़ा विकृत हो गया है, फिर भी प्राचीन इतिहास के लिए यह अत्यन्त उपादेय ग्रंथ है । फ्रांस के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् स्वर्गीय श्री लेवी ने इस ग्रंथ के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। यह बात भी अब प्रमाणित हो चुकी है कि बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड मूल रामायण में नहीं थे। इन्हें ई० पू० तीसरी शताब्दी में जोड़ा गया था। मूल ग्रंथ में पांच काण्ड बारह हजार श्लोकों में थे। रामायण की फलश्रुति छठे काण्ड के अन्त में है, फिर भी सातवां काण्ड काफी प्राचीन है। भास (ई० पू० प्रथम शताब्दी), भदन्त अश्वघोष (प्रथम शताब्दी), कालिदास (पांचवीं शताब्दी), भवभूति (आठवीं शताब्दी ने इस काण्ड में कही घटनाओं को उद्धृत किया है। निरुक्त व्याख्याकार दुर्ग ने तो वाल्मीकि रामायण से श्लोक भी उद्धृत किए हैं। वाल्मीकि रामायण के अनेक उद्धृत श्लोक तथा उनकी छाया महाभारत में है।" वाल्मीकि को राम का समकालीन तो कहा ही गया है, भील या डाकू एवं नीच जाति का भी बताया गया है । आजकल भंगी अपने को वाल्मीकि की संतान कहते हैं, अपनी जाति भी वाल्मीकि ही बताते हैं; परन्तु यह सारी ही बातें निराधार हैं। राम के समकालीन किसी वाल्मीकि नाम के ऋषि का कोई अस्तित्व नहीं है। यद्यपि उनका आश्रम अयोध्या के निकट ही कहा गया है; पर उसकी चर्चा केवल उत्तरकाण्ड में ही है, इससे पूर्व नहीं, जो प्रक्षिप्त हो सकती है। वाल्मीकि ई० पू० सातवीं शताब्दी के बुद्ध से कोई सौ वर्ष पूर्व के पुरुष हैं। उनका जन्म भृगुवंश (च्यवन की परम्परा में) हुआ था और वह किसी इक्ष्वाकुवंशी राजा के आश्रित थे। यह अश्व- घोष का वचन है, जो ईसा की प्रथम शताब्दी में विद्यमान थे। वाल्मीकि उनसे कुछ ही सौ वर्ष पूर्व यह ग्रंथ लिख चुके थे। तब तक इस ग्रंथ का वर्त- मान' रूप नहीं बन पाया था और रामायण के केवल पांच कांड और बारह सौ श्लोक ही थे। केवल राम के परिपूर्ण वर्णन का यही सर्व प्राचीन ग्रन्थ है। सीताराम के यमज पुत्र लव-कुश थे, उन्हें वाल्मीकि ने रामायण का पाठ पढ़ाया और उन्होंने उसे राम के यज्ञ में गान किया, यह भी कुछ विचित्र-सी बात है। लव-कुश राम-सीता के पुत्र थे; परन्तु हकीकत तो यह है कि प्राचीन काल में जो गाने-बजाने या कथा सुनाने का पेशा करते थे; उन्हें 'कुशीलव' कहते थे। कुशीलव का अर्थ है, 'नृत्य के साथ गाने वाले।' ऐसे नाचने-गाने वाले पुरुषों को कौटिल्य भी 'कुशीलव' कहता है। रामा- ११६ -