परन्तु ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह बात सत्य नहीं टहरती है।
भविष्योत्तर पुराण में यह वर्णन है कि विजयादशमी के दिन शत्रु का पुतला बनाकर उसके हृदय को बाण से बीधना चाहिए। यह सम्भव है कि लोगों ने राम-रावण मे अपने वैयक्तिक शत्रु-मित्र भावों को आरोपित करके राम-रावण के युद्ध का अभिनय नव रात्रियों के नौ दिनों में करके विजया-दशमी का सम्बन्ध रावण-वध से जोड़ दिया हो। उधर नवदुर्गा की भी वीर-पूजा होती है, जो शुम्भ-निशुम्भ असुर के देवी द्वारा हनन करने की मार्कण्डेय पुराण की कथा से सम्बन्धित है।
राम का जन्म चैत्र में हुआ। सम्भवतः तभी से वर्ष का आरम्भ चैत्र से माना जाने लगा। एक पुरानी परिपाटी यह भी थी कि चैत्र से सातवें मास में इन्द्रपूजा होती थी। पर्थियन प्राचीन इतिहास में भी ऐसा ही उल्लेख है। उस काल में भारत के अन्तर्गत नौ द्वीप थे, प्रत्येक द्वीपपति को स्वराट और समस्त भारत के अधीश्वर को सम्राट कहते थे। वर्ष के हर सातवें मास में स्वराट एकत्र होकर सम्राट का अभिवादन करते थे और शपथ लेते थे। दशहरा वही त्योहार है। हो सकता है कि रावण को जय करने के बाद राम को त्रिलोकीपति की उपाधि मिली हो और आश्विन में उनका ऐन्द्राभिषेक हुआ हो।
यूरोप, अमेरिका और ईरान में भी यह उत्सव मनाया जाता था। मैक्सिको में तो 'राम सीतव' उत्सव मनाने वाली एक जाति अभी भी है।
ईरान व युरोप के अनेक स्थानों पर सातवें मास में मित्र की उपासना होती थी। मित्र सूर्य ही का नाम है। उन्होंने अपने सगे भाई वरुण पर ही अभियान किया था, जो एलम इलावर्त का अधिपति हो गया था और असुरों का 'इष्टखर' (इष्टदेव) बन गया था तथा उसने अपनी पूजा प्रचलित की थी। वरुण का सहायक इन्हीं का भतीजा सूर्यपुत्र यम था, जो नरक (Dead Sea) क्षेत्र का अधिपति था। यम की तिथि दशमी है और वाहन भैसा है। इसी कारण सम्भवतः दशहरा पर भैंसा मारा जाता हैं।
"वाल्मीकि रामायण रावण की निधन-तिथि का ठीक-ठीक वर्णन नहीं करती; परन्तु हमें ऐसे आधार प्राप्त हैं कि इसका हम कुछ अनुमान लगा सकते हैं।"
जिस समय राम को रावण पर चढ़ाई करने की आवश्यकता हुई, उस समय उनके वनवास का १४वां वर्ष चल रहा था। वाल्मीकि ने वर्षा ऋतु में राम-विलाप का वर्णन किया है। लंकाकाण्ड से यह भी प्रकट है कि वर्षा के चार मास में कोई सीता को ढूंढने नहीं गया। अनुमान होता है कि
१२५