वाल्मीकि रामायण में राम विष्णु के अवतार नहीं हैं; परन्तु उसके नवीन संस्करणों में अवतारवाद की चर्चा है। महाभारत के नारायणीय खण्ड में दस अवतार माने गए हैं। उनमें राम भी एक हैं। वायु, वाराह, अग्नि और भागवत पुराण में भी दस अवतार हैं। हरिवंश में छः हैं। राम, कृष्ण सर्वत्र विष्णु अवतार माने गए हैं ; पर पूजा कृष्ण की प्राचीन और अधिक है। पातंजल महाभाष्य में राम नाम नहीं है। भवभूति राम को अवतार मानता है। मध्वाचार्य ने सन् १२६४ में नरहरितीर्थ को सीताराम की मूर्ति लाने को जगन्नाथपुरी भेजा था तथा बदरीनाथ से वे स्वयं राम की मूर्ति लाए थे।
जहां वासुदेव कृष्ण को अवतार की भांति पूजने का उल्लेख ई° पू° छठी शताब्दी में प्राचीनतम मिलता है, वहां राम का नहीं मिलता। गुप्त महाराज चन्द्रगुप्त पांचवीं शताब्दी में विष्णुध्वज स्थापन करते हैं। चौथी-पांचवीं शताब्दी वाला आडयार तमिल संतसंघ विष्णु महिमा गाता है। छठी शताब्दी में वराहमिहर विष्णु का पूजन लिखता है। महाभारत के व्यूह-पूजन में आलंकारिक वर्णन राम-परिवार का है। १०१३ ई° में जैन ग्रंथ 'धर्म परीक्षा' ने राम को अवतार माना है। गीता में ११वें अध्याय में जो विराट रूप कहा गया है, वह विष्णु ही का है।
ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में वाल्मीकि रामायण, जय तथा मनुस्मृति तीन ग्रंथ बने। 'जय' बढ़ते-बढ़ते 'भारत' फिर 'महाभारत' हो गया। रामायण में भी बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड पीछे से जोड़े गए। मनुस्मृति में भी वृद्धि हुई। पीछे पुराण बने। विष्णुपुराण पहली-दूसरी शताब्दी के लगभग बना।
चौदहवीं शताब्दी के मध्य में भारत में स्वामी रामानुज ने भवितमार्ग का प्रचलन करके विष्णु-पूजा आरम्भ की। इन्हीं की शिष्य परम्परा में पन्द्रहवीं शताब्दी से रामानन्द ने राम नाम का माहात्म्य स्थापित किया। इनकी शिष्य परम्परा में कबीर और तुलसी हए। तुलसी ने राम के धर्म का सांगोपांग वर्णन किया।
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