पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

रावण सिंहासन से उठता हुआ बोला,
"हाय! लंका वीर शून्य हो गई।
अब इस काल-युद्ध में मैं किसे भेजूं?"
अच्छा, मैं स्वयं ही उस
अभागे राम का बल देखूगा।"
अपने पराक्रमी पुत्र मेघनाद के हत होने पर
यह कहा था महाबली रावण ने;
परन्तु चौरासी दिन के युद्ध के
अंत में रावण का भी वध हुआ।
राक्षसराज का नाश हुआ पृथ्वी से।
धर्म और न्याय की विजय हुई।
आचार्य जी का यह उपन्यास
राम-रावण युद्ध से सीता के
भू प्रवेश तक की रोचक रोमांचक
कथा को इस प्रकार सुनाता है,
जैसे जीते-जागते संसार को
हम सामने देख रहे हों।
अंत में 'राम भाष्यम्' खण्ड बहुत ही महत्त्वपूर्ण है,
जो इतिहास पुराण संबंधी अनेकानेक नये और
खोजपूर्ण तथ्यों को सरल शैली में सामने लाता है।