पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/८९

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"और गुरुपदं ?" "वे तुम्हारे धर्मपिता हैं।" । और तुम मां?" "मैं तुम्हारे पिता की दासी, तुम्हारी धाय।" "तो हम यहां क्यों आ गए मां !" "भाग्य ले आया लाल !" "तुम्हें भी ?" "मुझे तुम्हारे पिता ने निकाल दिया था।" "महल से निकाल दिया था?" "हां, लाल !" "क्यों मां?" "बेटा ! वे राजा हैं ?" "और वे महल में रहते हैं ?" "हां, पुत्र !" "मैं उनसे नहीं बोलूंगा "पिता जी बड़े बुरे हैं।" "ऐसा न कहो लाल ! तुम्हारे पिता दया और धर्म के अवतार हैं।" "और हमारी माता ?" "हां, वह, वह भी।" "हमारी माता तुम हो ?' "लाल ! मैं तुम्हारी दासी हूं।" "तुम हमारी मां हो।" "यह दुखिया, भिखारिन तुम्हारी मां ! हाय रे भाग्य !" "मां ! तुम पि.र रोने लगी। मुझे बड़ा होने दो, मैं तुम्हारे लिए एक महल बनवाऊंगा।" "और मैं हाथी-घोड़े ले आऊंगा।" इसी समय बहुत-से ऋषिकुमार कोलाहल करते हुए वहां आ पहुंचे। एक ऋषिकुमार ने रू.व से कहा, "कुमार ! घोड़ा एक पशु होता है न ऐसा सुना था । वह आज यहां आया है।" घोड़ा एक पशु है और वह युद्ध में काम आता है। कहां देखा तुमने घोड़ा?" "आश्रम के उस पार है । उसकी बड़ी-सी पूंछ है। उसे वह बार-बार हिला रहा है।" 6 ८७