"पर वे सब उसका कर ही क्या सकते हैं? वह तो सबको मारे डाल रहा है। हमारे सैनिक तो भागने लगे।"
"तो शीघ्रता कीजिए आर्य। हमारा रथ शीघ्र वहां पहुंचाइए।"
"अच्छा, कुमार! लो, वह वीर तुम्हारी ललकार सुनकर यहीं आ गया।"
लव ने रथ के सम्मुख पहुंचकर कहा, "कुमार चन्द्रकेतु! लो मैं ही स्वयं आ गया हूं। मैंने आपके सब सैनिकों को परास्त कर दिया है। अब आपसे युद्ध करूंगा।"
चन्द्रकेतु ने लव को देखकर कहा, "ठहरो, ऋषिकुमार! तुम पैदल और मैं रथ पर, यह ठीक नहीं है। मैं भी नीचे आता हूँ! आर्य! रथ रोक दीजिए। मैं पैदल लड़ूंगा।
सुमन्त ने पूछा, "किसलिए कुमार!"
"इस वीर ऋषिकुमार का आदर करने के लिए। ऋषिकुमार! यह रघुवंशी चन्द्रकेतु आपका अभिवादन करता है।"
लव ने कहा, "कुमार! इतना आदर दिखाने की क्या आवश्यकता है? आप रथ पर चढ़े ही अच्छे लगते हैं।"
"तो आप भी एक रथ पर चढ़िए।"
"अरे, हम वनवासी रथ पर चढ़ना क्या जानें?"
सुमन्त ने कहा, "धन्य ऋषिकुमार! आपका विनय धन्य है!"
"कुमार! सुना है महाराज राम को अभिमान नहीं है, फिर उनके सेवक क्यों अभिमान करते हैं?"
"अश्वमेध के घोड़े को रोकना रार ठानना ही है। जो लड़ना चाहे, वही घोड़े को रोके।"
"क्षत्रिय तो पृथ्वी पर और भी हैं।"
सुमन्त ने लव को टोककर कहा, "ऋषिकुमार! तुम छोटे मुंह बड़ी बात करते हो।"
लव हंस दिया, "तो आर्य! परशुराम को तो महाराज ने मीठी-मीठी वातों से ही जीता था।"
चन्द्रकेतु ने क्रोधपूर्वक कहा, "अरे, बड़ों की निन्दा करता है?"
"अरे, मुझको ही आंख दिखाता है?"
"अब इसका निर्णय शस्त्र करेंगे।"
"उठाओ शस्त्र।"
चन्द्रकेतु और लव में युद्ध होने लगा। लव बड़े कौशल से चन्द्रकेतु के बाण काटकर प्रहार करने लगा। इसी समय राम भी पुष्पक विमान से वहां
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