यहाँ कभी कभी लगातार तीन चार रातें बड़े मजे में कट
जाती थीं। यह मेरे दिल बहलाने की जगह हुई और वह
रहने की।
यह सब करते धरते अगस्त का महीना आ पहुँचा और पानी बरसना शुरू हुआ। यद्यपि तम्बू खड़ा कर के उसमें रहने का सब सामान ठीक कर लिया था, तथापि वहाँ झड़ी से बचने के लिए कोई पर्वत की ओट न थी। अगस्त से ले कर कुछ दिन अक्तूबर तक इस तरह वर्षा हुई कि घर से बाहर निकलना मेरे लिए कठिन हो गया। वर्षा आरम्भ होने के पहले अंगूर के कोई दो सौ गुच्छे सुखा कर मैंने रख लिये थे।
कुछ दिन से मेरी बिल्ली कहाँ चली गई थी। उसका कुछ पता न था। मैंने समझा, शायद वह मर गई। वर्षा आरम्भ होते ही देखा कि वह तीन बच्चों को साथ ले कर आ गई। उसे देख कर मुझे बड़ा अचम्भा हुआ। किन्तु उस दिन से मैं बिल्लियों के उपद्रव से हैरान हो गया। झुण्ड की झुण्ड बिल्लियाँ आने लगीं। तब मैं उनको भगाने की फिक्र में लगा। आख़िर जब मैं उन्हें यों न भगा सका तब गोली मारना शुरू किया।
बरसात के पानी में भीगने के भय से मैं बाहर न जाता
था। इधर खाद्य-सामग्री भी समाप्त हो चली। मैं सुयोग
पा कर दो दिन बाहर निकला। एक दिन एक बकरा और
दूसरे दिन एक कछुआ शिकार में मिला। कछुआ खाने में
बड़ा स्वादिष्ठ था। आज कल मेरे खाने का यह नियम था
कि सवेरे सूखे अंगूरों का एक गुच्छा, दोपहर को बकरे या कछुए का भुना हुआ मांस और रात को कछुए के दो तीन
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