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कृषि-कम्म

पहले लिखा जा चुका है कि मेरे घर के पास कुछ जौ और धान के पौधे उपजे थे। उनमें से मैंने तीस बालें धान की और बीस जौ की, बीज बोने के लिए, रख छोड़ी थीं। बरसात के बाद मैंने सोचा कि बीज बोने का यह उपयुक्त समय है। मैंने अपने काठ के कुदाल से ज़मीन खोद कर उसे दो हिस्सों में बाँटा। बीज बोते समय इस बात पर ध्यान गया कि "ज़मीन की पहचान और फ़सल बोने का समय मैं ठीक ठीक नहीं जानता, अतएव एक ही बार सब बीजों को बो देना बुद्धिमानी न होगी।" यह सोच कर मैंने एक एक मुट्ठी बीज दोनों में से रख कर बाक़ी बो दिया। मैंने यह बड़ी अक्लमन्दी का काम किया, क्योंकि बरसात बीत जाने पर वृष्टि के अभाव से एक भी बीज अङ्कुरित न हुआ। किन्तु दूसरे साल वही बीज, वर्षा का पानी पाकर, सब के सब उग आये जैसे नया बीज बोया गया हो। परन्तु उस समय बीज को निष्फल होते देख मैं खेती के उपयुक्त ज़मीन ढूढँने लगा। मेरे कुञ्जभवन के पास एक जमीन का टुकड़ा था। उसे मैंने खेत के लायक पसन्द कर के जोत गोड़ कर आबाद किया और फ़रवरी के अन्त में बीज बोया। मार्च और अपरैल की वर्षा का पानी पाकर बड़े सुन्दर पौदे निकले और फले भी खूब। किन्तु इस दफ़े भी मैं सब बीज बोने का साहस न कर सका। इसलिए पूरे तौर से मुझे फ़सल भी न मिली। जो हो, दो बार परीक्षा करने से मुझे अभिज्ञता हो गई कि खेती का ठीक समय कब होता है। साल में दो बार बीज बोने और फ़सल तैयार करने का समय आता है।

धान के पौदे क्रमशः बढ़ने लगे। नवम्बर में आकर वर्षा रुक गई। मैं फिर अपनी विनोदवाटिका में गया। यधपि कई