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राबिन्सन क्रूसो।

को स्वदेश लौटने का सुख भी इस सुख के आगे तुच्छ है। मैंने इस निरुद्देशयात्रा में जो कुछ सुख का अनुभव किया था उससे कहीं बढ़कर सुख घर आने पर मिला। इससे मैंने संकल्प किया कि अब से कभी अधिक दूर न जाऊँगा।

मैंने घर आकर एक सप्ताह विश्राम किया। इधर कई दिनों तक मैं तोते के लिए एक पींजरा बनाता रहा। एकाएक मुझे कुञ्जभवन में बँधे हुए बकरी के बच्चे की बात स्मरण हो आई। मैं उसे घर ले आने की इच्छा से रवाना हुआ। वहाँ जाकर देखा, वह मारे भूख-प्यास के अधमरा सा हो गया है। मैंने पेड़ से हरे हरे पत्ते तोड़कर उसे खिलाये। वह भूख से ऐसा व्याकुल था कि खाने के लाभ से पालतू कुत्ते की भाँति आपही मेरे पीछे पीछे आने लगा। मेरे हाथ से दाना-घास पाकर वह खूब हिल गया। मेरे साथ वह सखा का सा व्यवहार करने लगा। मैं भी उसे जी से प्यार करने लगा।



फ़सल

इस द्वीप में मेरा तीसरा साल आरम्भ हुआ। प्रथम वर्ष की तरह दूसरे साल का वृत्तान्त यद्यपि मैं सविस्तार वर्णन न करता तो भी पाठकों ने समझ लिया होगा कि मैं आलसी बनकर बैठ न रहा था। शिकार खेलना, घर बनाना, खाद्य सामग्री तथा आश्रम के उपयुक्त वस्तुओं का संग्रह करना इत्यादि सब काम मुझी को करना पड़ता था। उपकरण न होने से सीधा काम भी मेरे लिए परिश्रमसाध्य और समय-सापेक्ष हो जाता था। दो आदमी जिस तने में से दिन भर में कम से कम छः तख़्ते चीर कर निकाल सकते हैं