मैंने देखा कि जहाज़ के कप्तान, माझी, मल्लाह और मेट आदि, जो सहज ही डरने वाले न थे वे लोग भी, लग्गी-पतवार छोड़ कर ईश्वर की प्रार्थना करने बैठ गये । सभी लोग पल पल में समुद्र की तलहटी में जाने की आशङ्का कर रहे थे ।
इसी प्रकार उद्वेग और अशंका में समय कटने लगा । आधी रात के समय एक नाविक ने आकर ख़बर दी कि जहाज़ में छेद हो गया है । एक और व्यक्ति ने ख़बर दी कि जहाज़ के भीतरी पेदे में चार फुट पानी भर गया है । तब सब लोग पानी उलीचने के लिए बुलाये गये । इतनी देर में मैं अकर्म्मणय हो बैठा था, क्यों कि मैं नौका-सम्बन्धी विद्या में अपटु था । मैं न जानता था कि क्या करने से जहाज़ की रक्षा होगी । नौका-सचांलन की शिक्षा का प्रारम्भ ही किया था । किन्तु इस समय पम्प चलाने के लिए मेरी भी पुकार हुई । मैं भय से काँपता हुआ कोठरी से निकल चला ।
हम लोग प्राणपण से पम्प चला कर जहाज़ में से पानी उलीच कर बाहर फेंक रहे थे । इतने में हमारे जहाज़ से विपत्ति के संकेत-स्वरूप तोप का शब्द हुआ । मैंने समझा, या तो जहाज़ टूट गया है या और ही कई भयानक दुर्घटना हुई है । मैं ख़ौफ़ के मारे मूर्छित हो गिर पड़ा । उस समय सभी लोग अपने अपने प्राण बचाने की फिक्र में थे, किसी ने मेरी अवस्था पर ध्यान न दिया । एक व्यक्ति ने मुझे मुर्दा समझ कर लाठी से अलग हटा दिया और मेरी जगह आकर आप पम्प चलाने लगा । मैं बहुत देर बाद होश में आया और देह झाड़ कर उठ खड़ा हुआ ।
हम लोग पम्प के द्वारा पानी फेंक रहे थे, किन्तु जहाज़ के निम्नप्रदेश में पानी क्रमशः बढ़ने ही लगा। तब सभी ने