पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४४
राबिन्सन क्रूसो।


आने के समय मैं रास्ता भूल कर भटकने लग गया था वहीं, एक घने वन के भीतर, एक स्थान मेरे मन के अनुकूल मिला। ऐसे घने जंगल में घेरा लगाने के निमित्त मुझे विशेष कष्ट न उठाना पड़ा। इस जगह को घेर कर मैंने दो बकरों और दस बकरियों को लाकर यहाँ रक्खा और पूर्व के घेरे को भी घेर कर खूब मज़बूत कर दिया।

मैं एक और जगह की तलाश करने लगा। द्वीप के पच्छिम ओर समुद्र के किनारे जा कर मैंने बहुत दूर एक नाव की तरह कुछ देखा। उसको देखते देखते मेरी आँखें चौंधिया गई तथापि वह इतनी दूर थी कि ठीक ठीक निश्चय न कर सका कि वह क्या है। जहाज़ में मुझे दो चार दूरबीने मिली थीं, पर इस समय एक भी मेरे साथ न थी। पहाड़ के ऊपर चढ़ कर देखा तो भी उसका कुछ निश्चय न कर सका। तब मैंने पहाड़ से उतर कर संकल्प किया कि अब बिना दूरबीन साथ में लिये बाहर न निकलूँगा। आखिर वहाँ से श्रागे बढ़ा। जाते जाते मैं ऐसी जगह पहुँचा जहाँ इसके पहले कभी न गया था। वहाँ जाकर मैंने जो कुछ देखा, उससे निश्चय किया कि यहाँ मनुष्य के पैरों का चिह्न देखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इस ओर जंगली लोग प्रायः आते हैं। उनके पैरों के बहुत चिह्न यहाँ देख पड़े। मैंने ईश्वर को इस कृपा के लिए धन्यवाद दिया कि मैं जिधर हूँ उधर ये लोग नहीं जाते हैं।

मैंने दक्खिन और पूरब की ओर समुद्र के किनारे जाकर देखा कि मनुष्य की खोपड़ी, हाथ, पाँव और हड्डियाँ बहुतेरी इधर उधर बिखरी पड़ी हैं। यह देख कर मेरे आश्चर्य और भय की सीमा न रही। एक जगह मैंने एक अग्निकुण्ड भी