उस जहाज़ के अध्यक्ष ने हमारे जहाज़ से भिड़कर साठ लुटेरों को हमारे जहाज़ पर चढ़ जाने की आज्ञा दी । हमारे जहाज़ पर आते ही वे लोग झटपट पाल की रस्सी काटने लगे । हम लोगोंं ने बन्दूक़ और बर्छा चला कर तथा ख़ाली बारूद की पुड़िया छोड़ कर दो-एक बार उन को भगा कर अपने डेक को बचाया, किन्तु अन्त में हम लोगों के तीन आदमी मारे गये, आठ घायल हुए और जहाज़ की गति भी मन्द हो गई । उसके कई कल-पुर्ज़े टूट जाने से वह लँगड़ा सा हो गया । तब हम लोग पकड़ लिये गये । हम लोगों को पकड़ कर वे शैली बन्दर में ले गये ।
मैंने जैसी आशङ्का थी वैसा कोई क्रूर व्यवहार वहाँ जाने पर देखने में न आया । डाकुओं के सर्दार ने हमारे साथी अन्यान्य बन्दियों को राज-दरबार में दास बनाकर भेज दिया और मुझको अपने पास रख लिया । मैं युवा और उत्साही था, इसलिए उसने मुझको अपने काम के उपयुक्त समझ कर ही शायद अपने यहाँ रख लिया ।
मेरे इस अवस्था-परिवर्तन में--वणिक् से एकदम दास होकर रहने में--मेरा हृदय अत्यन्त व्यथित होने लगा । उस समय मुझे फिर पिता का उपदेश और दुर्भाग्य की बात स्मरण होने लगी । किन्तु मैं तब भी न समझ सका कि मेरे संकट का अभी अन्त नहीं हुआ है, अनेक संकट अब भी भोगने को पड़े हैं ।
मेरे नये मालिक मुझको अपने घर ले गये । तब मेरे मन में कुछ कुछ यह नई आशा होने लगी कि वे जब जब समुद्र की यात्रा करेंगे तब तब मुझको ज़रूर साथ ले जायँगे । और, मेरे भाग्य से वे कभी न कभो स्पेनिश या