मैंने अपने भतीजे को, उनसे रुपया ले लेने के लिए खूब उत्सुक देखा। उसका मतलब था कि पहले रुपया ले लें फिर उनकी कोई व्यवस्था कर देंगे। किन्तु उसके इस आशय को मैंने पसन्द न किया। क्योंकि पास में धन न रहने से अपरिचित देश में कितना क्लेश होता है, इसे मैं बखूबी जानता था। मैं इन विषयों का पूर्णरूप से भुक्त-भोगी था। यदि वे पोर्तुगीज़ कप्तान आफ़्रिका के उपकूल में मुझको बचा-कर मेरा सर्वस्व ले लेते तो मैं ब्रेज़िल में जाकर दासत्त्ववृत्ति के सिवा और क्या करता? एक मूर जाति के दासत्व से भाग कर दूसरे के दासत्व में नियुक्त होता।
मैंने कप्तान से कहा,-हम लोग मनुष्य हैं। मनुष्यता दिखलाना हम लोगों का धर्म और कर्तव्य है। इस ख़याल से ही हमने आप को इस जहाज़ पर आश्रय दिया है। यदि आपकी दशा में हम होते और हमारी सी अवस्था आपकी होती तो हम भी आपसे ऐसे ही सहायता चाहते। हमने रक्षा के विचार से ही आप लोगों को जहाज़ पर चढ़ा लिया है न कि लूटने के मतलब से। आप लोगों के पास जो कुछ बच रहा है वह लेकर आप लोगों को अज्ञात देश में और असहाय अवस्था में छोड़ देना क्या अत्यन्त निर्दयता और नीचता का परिचय देना नहीं है? तो क्या मारने ही के लिए आप लोगों की यह रक्षा हुई है? क्या डूबने से बचाकर भूखों मारने की व्यवस्था विधेय है? मैं आप लोगों की एक भी वस्तु किसी को लेने न दूँगा किन्तु आप लोगों को अनुकूल स्थान में उतारना ही एक कठिन समस्या है। हम लोग भारत की ओर जा रहे हैं। यद्यपि हम लोग निर्दिष्ट-मार्ग को छोड़ कर बड़े ही टेढ़े मेढ़े पथ से जा रहे हैं तथापि यह समझ कर सन्तोष