दे दूँगा । ये सब वस्तुएँ आपके भरण-पोषण और घर लौट
जाने के समय राह-ख़र्च का काम देंगी ।" यह कह कर उन्होंने
नाविकों को रोक दिया कि वे हमारी किसी चीज़ को न छुएँ
और हमारी सब चीजें अपने ज़िम्मे रख कर मुझे एक चिट्ठी
लिख दिया । उस चिट्टे में मिट्टी के घड़ों तक का उल्लेख था ।
उसका मतलब यही था कि ब्रेज़िल में जाकर हम उस चिट्ठी
के ज़रिये अपनी सारी चीजें सहेज लें ।
हमारी नाव बहुत बढ़िया थी। कप्तान ने उसे मोल लेने की इच्छा से दाम पूछा । हमने कहा--“आप के साथ मोल तोल क्या ? आपकी दृष्टि में जो मूल्य जचे वही दे दीजिये ।" इस पर उन्होंने हमको साढ़े छः सौ रुपया देना चाहा और कहा, ब्रेज़िल जाने पर यदि इसका दाम कोई अधिक लगावेगा तो हम भी अधिक देंगे । उन्होंने पाँच सौ रुपया देकर इकजूरी को ख़रीदना चाहा; किन्तु जिसने मुझे स्वाधीनता प्राप्ति में सहायता दी थी, उसकी स्वाधीनता बेचने का विचार मेरा न हुआ । इकजूरी के कप्तान के पास रहना स्वीकार करने पर मैंने उसे योंही दे दिया । कप्तान ने कहा--इकजूरी यदि क्रिस्तान हो जाय तो उसे हम दस वर्ष बाद दासत्व से मुक्त कर देंगे ।
हम लोग बाईस दिन के बाद निर्विघ्न ब्रेज़िल के शान्त उपसागर में पहुँचे । बुरी दशा से तो उद्धार हुआ, किन्तु अब क्या करना होगा ? यही एक भारी चिन्ता थी । कप्तान के सद् व्यवहार का सम्यक् वर्णन करने में हम अक्षम हैं । उन्होंने हमसे कुछ भी जहाज़ का भाड़ा न लिया । इसके अलावा हमने अपने पास की जिन चीज़ों को बेचना चाहा वे सब उन्होंने मोल ले लीं । बाघ और सिंह का चमड़ा