पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७०
राबिन्सन क्रूसो।

पास (लकड़ी चीरने का) आरा नहीं था और मुझे तख्ते की आवश्यकता हुई, उस हालत में मैं कुल्हाड़ी से पेड़ काट गिराता था और उसके दोनों ओर की लकड़ी छील कर एक चपटा चौड़ा सा तख्ता तैयार कर लेता था । उस तख्ते पर रन्दा फेर कर चिकना कर लेता था । इस तरकीब से, बहुत परिश्रम करने पर, एक पेड़ से सिर्फ एक मोटा सा तख्ता तैयार होता था, पर हो तो जाता था ।

जहाज़ पर से मैं जो तख़्ता लाया था उससे पहले पहल मैंने एक टेबल और एक कुरसी बनाई । इसके बाद पेड़ से तख्ता निकाल कर उसके द्वारा घर में ताक़ ( रैक ) बनाया और उस पर सब चीजें करीने से रख दीं जिसमें जरूरी चीज जब चाहें उस पर से निकाल लें ।

यहाँ मैं अपना रोज़ रोज का काम,विचार और घटना आदि, दैनिक वृत्तान्त लिखकर डायरी तैयार करने लगा । इसमें मैंने अपनी चित्त-वृत्ति के अनुसार अनेक प्रकार की बातें लिखी थीं । निदान जब मेरी रोशनाई चुक गई तब मुझे लाचार होकर लिखने से हाथ खींचना पड़ा । मेरी डायरी में कितनी ही बातें बेसिर-पैर की थीं, जिनमें से चुन चुन कर मैंने विशेष विशेष दिन की प्रधान घटनायें यहाँ उद्धृत की हैं ।



क्रूसो का रोज़नामचा

३० दिसम्बर सन् १६५९ ईसवी—मैं दीन मतिहीन अभागा राबिन्सन क्रूसो, जहाज डूब जाने पर, इस भय दूर जनशून्य टापू में आपड़ा था र। इस टापू का नाम मैंने 'नैराश्य द्वीप'