२६ अक्तूबर से ३० अक्तूबर तक--रहने के लिए जगह की खोज, और पहाड़ की तलहटी में स्थान का निरूपण । किले का निर्माण ।
३१ अक्तूबर-—द्वीप देखने के लिए बाहर निकल कर मैंने बकरी का शिकार किया और मरी हुई बकरी और उसके जीवित बच्चे को घर ले आया ।
३ नवम्बर--दिन के पिछले पहर से मैं मेज़ बनाने में लगा । तीन दिन में मेज़ बन कर तैयार हो गई ।
५ नवम्बर—-बन्दूक़ और कुत्ते को साथ ले जाकर मैंने एक वनविड़ाल मारा । उसका चमड़ा बहुत मुलायम था । मैं जिस जन्तु का शिकार करता था उसका चमड़ा निकाल कर रख लेता था । समुद्र के किनारे घूमते-फिरते मैंने भाँति भाँति के कितने ही अपरिचित पक्षी देखे । अजीब तरह के दो तीन जन्तु देख कर मैं चकित और भयभीत सा हो गया । ये जानवर कौन हैं ? यह तजवीज़ करके मैं देख ही रहा था कि वे भाग गये । मैं उनका शिकार न कर सका ।
७ नवम्बर से १२ तक--आकाश बिलकुल साफ़ हो गया था । इन कई दिनों में किसी तरह मैंने एक कुरसी बना ली । किन्तु उसकी गढ़न मेरे पसन्द की न हुई । मैंने उसको तोड़ ताड़ कर अपने पसन्द लायक बनाने की कई बार कोशिश की, पर मैं कृत-कार्य न हो सका ।
१३ नवम्बर से १७ तक--फिर खूब जोर शोर से वर्षा, वायु, बिजली और वज्राघात का भयंकर दृश्य दिखाई दिया । मैंने डर कर बारूद को थोड़ी थोड़ी करके अलग अलग रखने का विचार किया । छोटी छोटी थैलियाँ और बक्स