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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/९५

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राबिन्सन क्रूसो।


मय! मेरी रक्षा करो" यही पुकार रहा था। इसके सिवा मेरे मन में किसी अन्य धर्म का समावेश न था। किन्तु मैं ऐसा अधार्मिक था कि प्राणनाश का भय दूर होते ही मेरे मन से ईश्वरस्मरण का वह पवित्र भाव शीघ्र ही विलीन होगया।

मैं अभी बैठा ही था, इतने में देखा कि काली घटा ने आकाश को चारों ओर से घेर लिया। अब शीघ्र ही पानी बरसेगा। मैं यह सोच ही रहा था कि वायु का वेग कुछ प्रबल हो उठा। आधे ही घंटे में वायु ने प्रचण्ड आंधी का स्वरूप धारण किया। समुद्र मथित सा होकर फेन उगलने लगा; तरङ्ग पर तरङ्ग दौड़ने लगी, भयङ्कर शब्द करता हुआ समुद्र का हिलकोरा किनारे से आकर टकराने लगा। कितने ही पेड़ जड़ से उखड़ कर गिर गये। तीन घण्टे तक यह उपद्रव जारी रहा। इसके बाद धीरे धीरे कम होते होते और दो घंटे में जाकर तूफ़ान निवृत्त हुआ। इधर आँधी का वेग कम हुआ उधर मूसलधार पानी बरसना शुरू हुआ। इतनी देर तक मैं जड़वत् बैठा ही था। वर्षा का पानी मुझे होश में लाया। तब मैंने समझा कि यह आँधी-पानी भूकम्प का ही फल है। अब भूकम्प न होगा। मैं अब अपने घर में घुसने का साहस कर सकता हूँ। यह सोच कर मैंने हिम्मत बाँधी और वृष्टि के जल से ताड़ित हो कर अपने तम्बू के भीतर जा बैठा। ऐसे वेग से पानी बरस रहा था कि मेरा तम्बू फटने पर हो गया। तब मैं गुफा के भीतर आश्रय लेने को बाध्य हुआ। किन्तु वह टूट कर कहीं माथे पर न गिर पड़े, इस भय से मैं वहाँ शङ्कित और असुखपूर्वक ही रहा। सारी रात और दूसरे दिन सवेरे से सायंकाल तक वृष्टि होती रही। मैंने दीवार की जड़ में एक छेद कर दिया, उसके द्वारा वर्षा का पानी बाहर निकल गया। यदि पानी बाहर न जाता तो गुफा में पानी ही पानी भर जाता।