पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/११६

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रामचन्द्रिका सटीक । अभिलापही। दीनस्वर राम कबहू न मुखभाषही १४ च- चलाछद ॥ पक्षिराज यक्षराज प्रेतराज यातुधान । देवता अदेवता नृदेवता जितेजहान। पर्वतारिअर्बखर्बशर्व सर्वथा बखानिकोटि कोटि सूर चन्द्र रामचन्द्रदास मानि १५ चामरछद ॥ राजपुत्रिका कह्यो सो औरको कहै सुने । कान | दि बारबार शीश बीसधा धुने ।चापकीर रेखखांचि देव | साखिदै चले।नांघि, ते भस्म होहिं जीव जे बुरे भले १६॥ अतिपोच कहे निषिद्ध जो दुखदानि शोच है ताको उरसों मोच कहे त्याग करौ छम कपट १४ पक्षिराज गरुड़ यक्षराज कुबेर प्रेतराज यमराज यातुधान राक्षम देवता श्री प्रदेवता दैत्य नदेवता राजा श्री पर्वतारि इद्र | से ये सब अर्ब खर्व सख्या परिमित नौ अर्ब खर्ब शर्ब कहे महादेव अर्थ | खर्वको संबध शर्व पदहू मोहे तिन्हें सर्वथा कहे सब प्रकार पखानि कहे कहौ औ कोटि सूर्य श्री चन्द्रमा हैं तिन सब को रामचन्द्र के दास कहे | सेवक मानो रामचन्द्र के मारिने लायक ये कोऊ नहीं हैं इति भावार्थ: १५ | लक्ष्मण को राजपुत्रिका ने जे कटुवचन कहे तिन्हैं और कौन कहै श्री कौन सुनै अर्थ प्रति कटुवचन कहे जे काहू के कहिवे सुनिये लायक नहीं है औ जो थोरो मुनित्रोह करै वौ जामें भागे और ना मुनि परै तालिये कान {दि के बिनसुने वचनन के शोक सों बीसधा अर्थ अनेक प्रकार सौं शीशधुनै अथवा सीताही कान मूदिकै शीश धुनतभई कान मुंदिवे को हेतु यह | जामें लक्ष्मण के ये बोधवचन न सुनिपरें तो लक्ष्मण बातें ना कहैं रामचन्द्र | के पास जाई अथवा जामें कटुवचन ना सुनिपर तालिये लक्ष्मणही कानन को दिकै कार बार शीश धुनत भये १६ ॥ छिद्रताकि क्षुद्रराज लानाथ श्राइयो। भिक्षु जानि जान कीसि भीखको बुलाइयो । शोचपोच मोचकै सकोच भीम बेखको । अतरिक्षही करी ज्यों राहु चंद्ररेखको १७ दडक ॥ धूमपुरके निकेत मानों धूमकेतुकी शिखा की धूम योनिमध्य रेखा सुधाधामकी। चित्रकीसी पुत्रिका की रूरे वयरूरे माह