पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१९५

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रामचन्द्रिका सटीक १६३ पहिराइ माल विशाल अर्चहि कैगये सब साथकी ३६ कलहसछंद ॥ हति इद्रजीत कह लक्ष्मण आये । हॅसि रामचन्द्र बहुधा उरलाये॥ सुनि मित्र पुत्र शुभ सोदर मेरे। कहि कौन कौन सुमिरौं गुण तेरे ३७ दोहा ॥ नींद भूख अरु प्यासको जो न साधते वीर ॥ सीतहि क्यों हम पावते सुनि लक्ष्मण रणधीर ३८॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायामिन्द्रजिधवर्णनो नामाष्टादशः प्रकाश.॥१८॥ लक्ष्मण सौ कैसे जायभिरयो भय जो डर है सोही कहे हृदय सों हरयो कहे दुरिभयो है जाके ऐसो जो गर्वादि करिकै अंध कहे प्राधरो अषक नाम दैत्य है सो जैसे भव जे महादेव हैं तिनसों युद्ध में जुरचो है अर्थ जैस महादेव सों निर्भय अधक लरथो तैसे लक्ष्मण सो इद्रजीत लरत भयो ३४ एक एक कहे एकको परस्पर अनेक शर मारतहैं अर्थ लक्ष्मण मेघनाद को अनेक शर मारत हैं मेघनाद लक्ष्मणको मारत हैं से शर दुहुन के भगनमें | मंदर में जलचुदसम परत हैं अर्थ अतिबलीन तासों कछु पीड़ा नहीं करत उद्धस्यो कादयो ३५ सायकी कहे जो अर्चा की विधि सग मो लै आये रहैं कह शुभगाथ की पाठ है तो शुभगाय कहे लक्ष्यण ३६ । ३७ । ३८ ।। इति श्रीमहागजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जमजानकीप्रसाद निर्मितायाराममक्किमकाशिकायामष्टादश प्रकाश ॥ १८ ॥ 1 दोहा । उनईसयें प्रकाशमें रावण दु खनिधान ।। जू- मैंगो मकराक्ष पुनि हैहै दूतविधान १ रावण जैहै गूढथल रावर लुटै विशाल ॥ मंदोदरी कढ़ोरिवो अरु रावणको काल २ मोटनकचंद ॥ देख्यो शिर अजलि मे जबहीं। हाहा करि भूमि पखो तवहीं ॥ आये सुत सोदर मंत्रि तबै ।