पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०९

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२०७ रामचन्द्रिका सटीक। मगलपाठ पढ़त हैं तैसे सीताजू के रामचन्द्र पास गमन में देर पढ्त भये अथवा द्विज औ देव नौ पदीजन शुभगीता पढ़त भये औ जो अग्नि के श्रको बैठिकै सीता आई सो लोक के देखाइब को तो शुद्धता की साक्षी दियो औ जो सीताको देह कनककुरग के प्रागमन में रामचन्द्र अग्नि को सौंप्यो रहै ता देहकी थाती सम रामचन्द्र के दीबेको अग्नि ल्याये हैं सो जानो ५।६॥ महादेवके नेत्रकी पुत्रिकासी । कि सग्रामकी भूमिमें च- डिकासी॥ मनोरनसिंहासनस्था शची है। किधों रागिनी रागपूरे रची है ७ गिरापूरमें है पयोदेवतासी। किधों कज की मजुशोभा प्रकासी ॥ किधों पद्मही में सिफाकद सोहै। किधौं पद्मके कोश पद्मा विमोहै ८ कि सिंदूर शैलान में सिद्धकन्या। किधौं पद्मिनी सूरसंयुक्त धन्या ॥ सरोजासना है मनो चारु बानी। जपापुष्पके बीच बैठी भवानी मनो ओषधीवृदमें रोहिणीसी। कि दिग्दाहमें देखिये योगिनी सी ॥ धरापुत्र ज्यों स्वर्णमाला प्रकाशै । मनो ज्योतिसी तक्षकाभोग मासे १० सुरेंद्रवज्राछंद । आशावरी माणिक कुंभ शोभै अशोकलग्ना वनदेवतासी । पालाशमाला कुसु- मालिमध्ये वसंतलक्ष्मी शुभलक्षणासी ॥ आरक्तपत्रा शुभ चित्रपुत्री मनो विराजै अति चारु बेखा । सम्पूर्ण सिन्दूर प्रभास कैयौं गणेशभालस्थल चद्ररेखा ११ ॥ जहां केवल रत्नपद पाइये वहा अरुणही रनको बोध होत है यह कवि नियम है रामदीपिकादि अथवा अनुराग प्रेम इति ७गिरा सरस्वती के पूर कहे जलसमूह में पयोदेवता कहे जलदेवता हैं औ कि गिरापूरमें कजकी शोभाहै अर्थ कि कमलहै सरस्वतीको जल अरुण प्रसिद्धहै "पूरो जलसमूहे स्यादिति मेदिनी" ८ सूर जे सूर्य हैं तिनसों संयुक्त मिली पद्मिनी कम- लिनी है सूर सम अग्नि है कमलिनी सम सीता है यहां अरुण सरोज