रामचन्द्रिका सटीक । नद शब्द है ताको जो मोद है अर्थ परस्पर स्त्री पुरुष, संभाषणानंद है ताको चंड कहे उग्र अर्थ नीकीविधि खंडन कहे खंडनकर्ता है अर्थ चक्र- वाकन को वियोगी करि परस्पर स्त्री पुरुष संभापणानंद को दूरि करत है अथषा प्रथम कमलाकर पद कह्यो है तहां श्वेतादि कमल जानो | इहां कोकनद कहे अरुण कमल को जो मोद है ताको चंड खंडन है "रतोत्पलं योकनदमित्यमरः " श्री परमपुरुष जो पति है ताके पदसों जे स्त्री विमुख हैं अर्थ मानकिये हैं तिन्है परुपरुख कहे कठोर रुख है अर्थ तापकर्ता है औ जे लोगन पतिसों सुमुख हैं तिनको सुखद है औ विदुष जे प्रवीणलोग हैं तिन करिकै उरमें धारियत है प्रवीण के सदा चन्द्रोदय की इच्छा रहति है चौरादिक चन्द्रोदय नहीं चाहत इति भावार्थः नारद कैसे हैं कि कमला जो लक्ष्मी है अर्थ द्रव्य ताके आकर समूहसों उदास है कर हाथ जाको अर्थ बहुतहू द्रव्य कोऊ देइ ताको ग्रहण नहीं करत अल्पकी का कथा है इति भावार्थः श्री प्रकर्ष जे दोष हैं गोवधादि औ ताप जे दैहिक, दैविक, भौतिक, त्रैताप हैं औ तमोगुण के शोषक दूरिकर्ता हैं तमोगुण के शोप कहि या जनायो कि सदा सत्त्वगुणयुक्त रहत हैं औ अमृत कहे नाही है मृत्यु जिनकी अशेष कहे पूर्ण ऐसे जे विष्णु हैं तिनके जे भाव कहे अनेक लीला हैं तिनको विशेष सों वर्षत हैं अर्थ भगवान् की अनेक लीला विशेष सों गान करत हैं अथवा भाव कहे अभिप्राय ताको वर्षत हैं कहत हैं अर्थ भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल में जो ईश्वर के अभिप्राय के कृत्य हैं ताहिं जानत हैं सो सबसों कहत हैं त्रिकालज्ञ हैं इत्यर्थः "भावोभिप्राय- वस्तुनोः स्वभावजन्मसत्तात्माक्रियालीलाविभूतिष इन्यभिधानचिन्तामणिः" औ कोक जो शास्त्रविशेष हैं ताको जो नद शब्द है वचन इति ताको जो मोद. आनंद है ताके खंडन कहे खंडनकर्ता हैं अर्थ कोकशास्त्र मों अनेक कामवार्ता हैं तिनको निंदत हैं औ परमपुरुष जे भगवान् हैं तिनके पदसों जे पाणी विमुख हैं अर्थ विष्णु की भक्ति नहीं करत तिन्हैं परुपरुख कठोर रुख हैं औ जे सुमुख हैं अर्थ विष्णुभक्त हैं तिनै सुखद हैं औ विदुष जे पंडित हैं तिन करिकै जिनको उरमें धारियत है अथवा विशेष सों दुःख नहीं जिन करिकै उरमें धारियत अर्थ सदा आनंदयुक्त रहैं ४७ ॥ दोहा ॥ आई जानि वसंत ऋतु वनहिं विलोकत
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