३०८ रामचन्द्रिका सटीक । अशेख २६ दोहा।। कटिके तत्त्व न जानिये सुनि प्रभु त्रिभु- वनराव ॥ जैसे सुनियत जगतके सत अरु असत सुभाव ३० नाराचछंद ।। नितंब बिंबफूलसे कटिप्रदेश क्षीन है। विभूति लटिली सबै सो लोकलाज लीन है ॥ अमोल ऊजरे उदार जंघयुग्म जानिये।मनोजके प्रमोदसों विनोदपत्र मानिये३१॥ रेख कहे लीक अर्थ हृदयमों मदन बस्यो है ताकी छवि बहार कढ़िक देखि परति है कामको रूप श्याम है २६ तत्त्वस्वरूप " तत्वं स्वरूपे पर- | मात्मनीति मेदिनी" सत्स्वभाव पुण्यादि ३० नितंबबिंब कहे नितंबमंडल नितंबस्वरूप इ.ते "बिम्बं तु प्रतिविम्बे स्यान्मएडले पुनपुंसकपिति मेदिनी" फूलसे कहे प्रफुल्लित हैं अर्थ आनंद सहित हैं औ कटिप्रदेश अतिक्षीण है मो मानो नितंबन काटेकी विभूति संपत्ति लूटिलीन्हीं है तासों आनंद सहित हैं औ कटि लोक के लाज सों लीन कहे छपी है ऊजरे मलरहित | प्रमोदसों कहे प्रसन्नता सहित अर्थ अतिप्रशस्त मनोज जो काम है ताके मानो विनोदयंत्र कहे विनोदके अर्थ यंत्र हैं और यंत्र के बंधनसों आनंद होत है इनके देखतही आनंद होत है ३१ ॥ छवानकी छुई न जाति शुभ्र साधु, माधुरी । विलोकि भूलि भूलि जाति चित्त चालि आतुरी ॥ विशुद्ध पादपद्म चारु अंगुली नखावली अलक्तयुक्त मित्रकी सो चित्र बैठकी भली ३२ दोहा ॥ कठिन भूमि अतिको वरे जावकयुत शुभ पाइ ॥ जनु मानिक तनत्राणकी पहिरी तरी बनाइ ३३ चौपाई । बरणवरण अँगिया उरधरे । मदन मनोहरके मन हरे॥अंचल अतिचंचल रुचि रचें । लोचन चल जिनके सँग न. ३४ दोहा॥नखशिख भूषित भूषणन पटि सुवरण- |मय मंत्र ॥ यौवनश्री चल जानि जनु बांधे रक्षायंत्र ३५ चित्र- पदाचंद ॥ मोहन शक्ति न ऐसी । मकरध्वजध्वज जैसी॥ मंत्र वशीकर साजें। मोहनभूरि विराजे ३६ ॥
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