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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१५

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३१८ रामचन्द्रिका सटीक । विहीने । राजन श्रीरघुनाथ के बैर कुमंडल छोड़ि कमंडल लीने ४७ दोहा ॥ कमल कुलन में जात ज्यों भँवर भयो | रसचित्र ॥राजलोक में त्यों गये रामचन्द्र जग मित्र ४८ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीराम- चन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांवनविहार- वर्णनन्नाम द्वात्रिंशःप्रकाशः॥३२॥ हौदामें मणिमयी कनकजालिका झांझरी घनी हैं इत्यर्थः॥ अथवा मा- लरि की जारी मणिमयी कनककी घनी बनी हैं अगूढ़ प्रसिद्ध ४५ । ४६ असि दंड तरवारि कुमंडल पृथ्वीमंडल ४७। ४८॥ इति श्रीमजगज्जननिजनकजानझीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां द्वात्रिंशःप्रकाशः ३२॥ दोहा ।। तेंतीसवें प्रकाश में ब्रह्मा विनय बखानि ॥ शम्बुकवध सियत्याग अरु कुश लव जन्म सो जानि १ ॥ त्रिभंगीछंद ॥ दुर्जनदलधायक श्रीरघुनायक सुखदायक त्रिभुवनशासन । सोहैं सिंहासन प्रभाप्रकाशन कर्मविनाशन दुखनाशन ॥ सुग्रीव विभीषण सुजन बंधुजन सहित तपो- धन भूपतिगन । आये सँग मुनिजन सकल देवगन मृग तपकानन चतुरानन २ तोटकछंद ।। उठि आदरसों अकु- लाइ लयो । अतिपूजन के बहुधा बिनयो ॥ सुखदायक आसन शोभरये । सबको सो यथाविधि पानिदये ३ दोहा॥ सबन परस्पर बूझियो कुशलप्रश्न सुख पाय ॥ चतुरानन बोले वचन श्लाघा विनय बनाय ४ ब्रह्मा-मनोरमाछंद ॥ सुनिये चितदै जगके प्रतिपालक । सबके गुरुहौ हरि यद्यपि १ शंबुकनामा शूद्र ॥