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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२९

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३३२ रामचन्द्रिका सटीक। वृंदावनो भूभली है। तहां नित्य मेरी विहारस्थली है ४६ यहै जानि भूमें द्विजन्मान दीनी । बस यत्र वृंदाप्रिया प्रेमभीनी।। सनाढयानकी भक्ति जो जीयजागै। महादेव को शूल ताके न लागै ५० बिदा है चले रामपै शत्रुहंता । चले साथ हाथी रथी युद्धरंता ॥ चतुर्धा चमू चारिहू ओर गाजै। बजै दुंदुभी दीह दिग्देवलाजै ५१ दोहा ॥ केशव वासर बारहें रघुपति के सब वीर ॥ लवणासुर के यमनि ज्यों मेले यमुनातीर ५२ मनोरमाछंद ॥ लवणासुर ाइगयो यमुनातट । अवलोकि हँस्यो रघुनंदनके भट ॥ धनुवाण लिये निकसे रघुनंदनु । मदके गजको सुत केहरिको जनु ५३ लवणासुर-सुजंगप्र- यातछंद । सुन्यो तें नहीं जो इहां भूलि आयो। बड़ो भाग मेरो बड़ो भक्ष पायो ॥ शत्रुघ्न ॥ महाराज श्रीराम हैं क्रुद्ध तोसों। तजौ देशको के सजौ युद्ध मोसों ५४ ॥ पाप कष्ट अथवा पातक ४७ वासुदेव कृष्ण ४८ वृंदा तुलसी ४६ । ५० | ५१ लवणासुर के यमनि कहे यमराजन के सम ५२ मदके गजको कहे मदयुक्त गजको ५३ । ५४ ॥ लवणासुर ॥ वहै राम राजा दशग्रीवहता। सो तो बंधु मेरो सुरस्त्रीनरंता ॥ हतौं तोहिं वाको करौं चित्त भायो। महादेवकी सों बड़ो भक्ष्य पायो ५५ भये क्रुद्ध दोऊ दुवो युद्ध रंता । दुवो अस्त्रशस्त्रप्रयोगी निहंता ।। बली विक्रमी धीर शोभाप्रकाशी। नश्यो हर्ष दोऊ सवर्षे विनाशी ५६ शत्रुघ्न- दोहा॥ लवणासुर शिवशूल बिन और नलागे मोहिं ॥शूल लिये बिन भूलिहं होंन मारिहों तोहिं ५७॥ रंता भोगी सरस्वती उनार्थः सुरस्त्रीनरंता कहिं या जनायो जो रावण इंद्रह को जीति देवांगनन को लैपायो ताहू को रामचन्द्र मास्यो तो अति-