रामचन्द्रिका सटीक । दोहा ॥ छत्तीसवें प्रकाश में लक्ष्मण मोहन जानि । आयसु लहि श्रीराम को पागम भरत वखानि॥१॥ रूपम लाछंद । यज्ञमंडलमें हुते रघुनाथजू तेहिकाल । चर्मअंगकु- रंगको शुभस्वर्णकी सँगवाल ॥आसपास ऋषीश शोभित शूर सोदर साथ । आइ भग्गुललोग बरणे युद्धकी सब गाथ २ भग्गुल-स्वागताचंद ॥ वालमीकि थल वाजि गयो जू। विप्रबालकन घेरि लयोजू ॥ एक बांचि. यदुघोटक बांध्यो। दौरि दीह धनुशायक सांध्यो ३ भांति भांति सब सेन सँहाखो। आपुहाथ जनु ईश सँवाखो ॥ अस्रशस्त्र तव बंधु जो धाखो । खंडखंड करि ताकहँ डाखो ४ रोपवेष वह वाण लयोजू । इंद्रजीत लगि बापु दयोजू ॥ कालरूप उर माहँ योजू । वीर मूछि तव भूमि भयोजू ५ तोमरछंद ॥ वहुवीर ले अरु वाजि । जबहीं चल्यो दलसाजि ॥ तब और बालक आनि । मग रोकियो तजि कानि ६ तेहि मारियो तव बंधु । तब द्वैगयो सब अंधु ॥ वह वाजिलै अरु वीर । रणमें रखो रुपि धीर ७॥ १।२ घोटक घोड़ो ३।४ पैंतीसवें प्रकाशमें कझो है कि "रिपुहा कर बाण वहै कर लीन्हों । लवणासुरको रघुनंदन दीन्हों" औ इहां कह्यो है कि इंद्रजीत लगि श्राप दयोजू तहां या जानौ कि वहै वाण इंद्रजीतके मा. रिवे को लक्ष्मणको दियो रहै औ वहै लवणासुरके मारिवेको शत्रुघ्नहूको दियो रहै अथवा इंद्रजीत लवणासुरहीको नाम जानौ इंद्रको लवणासुरहू जीत्यो है सो चौंतीसवें प्रकाशमें कह्यो है कि देव सबै रणहारि गये । भूमि भयो कहे भूमिमें परयो कानि मर्यादा ५।६।७॥ दोहा॥ बुधि बल विक्रम रूप गुण शील तुम्हारे राम ॥ काकपक्षधरि बाल दै जीते सव संग्राम ८ राम-चतुष्पदी
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