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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३३९

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रामचन्द्रिका सटीक । ३४३ वे अतिढीठ भये दलसंहरि ॥ केहुँ न भाजत गाजत हैं रण। वीर अनाथ भये बिन लक्ष्मण २८ जानहु जै उनको मुनि बालक । वे कोउहैं जगतीप्रतिपालक ॥ हैं कोउ रावणके कि सहायक । के लवणासुरके हितलायक २६ ॥ या छंदको सारवतीहू कहत हैं २२ तिनको कुशको धूमसम चर्मवर्म खंडित दैगयो क्रोध औ प्रतापसों अग्निसम कुश के अंग शोभित हैं २३ पवनचक्र बौंडर २४ विराम बेर त्रैलोक्य के अदेव दैत्य औ देवता विल्लुप्त है कहे लुकिकै त्रसे कहे डरात हैं अर्थ लुकिहू रहत हैं ताहूपर भय नहीं मिटत यासों प्रतिभय जानौ २५ । २६ बार कहे बारवार २७ । २८ जै कहे जनि जगतीप्रतिपालक ईश्वर अथवा राजा सहायक कहे वली २६ ॥ भरत ॥ बालक रावणके न सहायक । ना लवणासुरके हित लायक ॥ है निजपातकवृक्षनके फल | मोहतह रघुवं- शिन के बल ३० जीतहि को रणमांक रिपुनहि । को करै लक्ष्मण के बल विघ्नहि ॥ लक्ष्मण सीय तजी जब ते वन । लोक अलोकन पूरि रहे तन ३१ छोड़ोइ चाहत ते तबते |तन । पाइ निमित्त करेउ मन पावन ॥ शत्रुघ्न तज्यो तन सोदर लाजनि । पूत भये तजि पापसमाजनि ३२ दोधक छंद ॥ पातक कौन तजी तुम सीता । पावन होत सुने जगगीता ॥ दोषविहीनहि दोष लगावै । सो प्रभु ये फल काहे न पावै ३३ हमहूं त्यहि तीरथ जाइ मरेंगे । सतसंगति दोष अशेष हरेंगे ॥ वानर राक्षस ऋक्ष तिहारे । गर्व चढ़े रघुवंशहि भारे ॥ तालगि यह कै बात विचारी । हो प्रभु संतत गर्वप्रहारी ३४ चंचरीछंद ॥क्रोधकै अति भरत अंगद संग संगरको चले । जामवंत चले विभीषण और वीर भले भले ॥ को गनै चतुरंग सेनहि रोदसी नृपता