पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३९

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रामचन्द्रिका सटीक । चित्तमें अद्भुत औ भैयरसको संसार रच्यो अर्थ अति आश्चर्य औ भय सों युक्त किया दशशिर हजारवाहु देखि अद्भुतरस भयो भयानकरूप देखि भयरस भयो ४ रावण विमति सों कह्यो कि शम्भुकोदण्ड हमको दै कहे दीजिये औ राजपुत्री कहां है ताको वताओ धनुष तोरि राजपुत्री लै लंकहि जाउँ ५। ६ विमति सों कहत ऐसे सबन के गर्ववचन मुनि शेषकरि बाण बोलत भये राजसभा में बलको साज पराक्रम करु चित्त करिकै ना डोलु अर्थ मनोरथ ना करु अथवा बलकी साज सों अथवा बल औ साज सैन्यादि सों चित्त ना डोलावो मनोरथ ना करो अर्थ यहां तुम्हारो बल ना चलि है मुरराज महादेव के गिरिराज ते कैलास ते सुरराजको धनुष गुरु गरू जानी सुरराज पद को संबंध गिरिराजहू में है ७ ॥ मंथनाचंद ॥ वाणी कही बान । कीन्हीं न सो कान ॥ अ- द्यापि पानी न ! रेवदि कानीन ८ बाण-मालतीछंद । जो पै जिय जोर। तजौ सव शोर॥शरासन तोरि । लहौ सुख कोरि रावण-दंडक ॥ वज्रको अखर्वगर्व गंज्यो ज्यहि पर्वतारि जीत्यो है सुपर्व सर्व भाजे लै लै अंगना । खंडित अखंड आशु कीन्हों है जलेशपाशु चंदनसी चन्द्रिका सों कीन्हीं चंद वंदना ॥ दंडकमें कीन्हों कालदंडहूको मानखंड मानो कोहू कालही की कालखंडखंडना। केशव कोदंड वि- शदंड ऐसी खंडे अव मेरे भुजदंडनकी बड़ी है विडंबना १०॥ अतिगर्व सों वाणी वाणी कान में ना करयो अर्थ ना सुन्यो फेरि विमति सों कह्यो कि रे कानीन, पद्रवन्दि ! अद्यापि राजपुत्री को ना ल्यायो अर्थ राजपुत्री प्राप्तरूपी सुख शरासन तोरे विना न पैहै । जिन भुजदंडन वन को जो अखर्व बडो गर्व है ताको गंज्यो विदास्यो अर्थ इंद्रकी रक्षा श्री शत्रुवध करिवे में वज्र के अमोघताको गर्व रह्यो सो इनमें निष्फल भयो पर्वतारि इंद्रको इन जीत्यो तत्र सर्व सुपर्व देवता अपनी अपनी स्त्री लेले भागत भये फेरि अखंड काहूके खंडिके योग्य नहीं ऐसो जो जजेश वरुण को पाशु फांस है ताको आशु जल्दी जिन खंडन कियो तोरचो औं जिनकी वंदना पूजा चंदनसी चन्द्रिका सों चन्द्र करचो अर्थ अविभय मानि चन्द्रमा