रामचन्द्रिका सटीक । जे विधि है तिन लिख्यो है अथवा मुष्ठ जो तत्रशास्त्र है तासों शोधिक | दूट्टिकै अथवा शुद्ध करिकै मानो विकासे जाके पास होइ ताके जयको शत्रु | के अजय को मत्र लिख्यो है अथवा जयके अर्थ अजय कहे काहूके जीतवे योग्य नहीं ऐसे जे रामचन्द्र हैं तिनको जय कहे जीति को मत्र | विधि लिखिदियो है नासों रामचन्द्र सब को जीततहैं वश्य करत अथवा जया जो पार्वती हैं तिनहू के जयको नीतिवे को मत्र लिख्यो है यासों या जनायो प्रतिव्रतन में अग्रगणनीय जो पार्वती हैं तेज जिनको देखि पश्य होय तो और स्त्री पुरुषकी कहा बातहै श्राशय कि अतिसुदर हैं "जया जयन्ती तिथिभित्पथोमातत्सखीपु च इति मेदिनी" ४८ ॥ दोहा॥ यदपि भृकुटि रघुनाथकी कुटिल देखियतज्योति। तदपि सुरासुर नरनकी निरखि शुद्धगति होति ४६ श्रवण मकर कुण्डल लसत मुख सुखमा एकत्र ॥शशिसमीप सो- हत मनो श्रवणमकर नक्षत्र ५० पद्धटिकाछद ॥ प्रतिवदन सोभ सरसी सुरंग । तहँ कमलनयन नासातरग ॥ जनु यु- वतिचित्तविनमविलास ।त्यइ भ्रमरमॅवत रसरूपास ५१ ॥ मानी शशि के समीप कहे दोनों और निकट उदित है श्रवण नक्षत्र में है मकर राशि शोभिंत हैं नक्षत्रपदको सबंध श्रवणों है अथवा श्रवण मों मकरराशिस्वरूपके नक्षत्र कहे तारा मकरराशि स्वरूपेति शोभित हैं युक्ति यह कि उत्तराषाढ़ श्रवण धनिष्ठा तीनि नक्षत्रन में मकरराशि को वास है सो मानो श्रवणही में वर्तमान है शशिके दुवौ ओर शोभित हैं श्रवण नक्षत्र' की कर्ण की शब्दसाम्य है श्री मकरराशिकी श्री कुंडलकी रूपसाम्य है शशिसघश मुख है ४६।५० सरसी तड़ाग सुरंग निर्मल रामचन्द्र के नेत्र शोभा में भ्रमते हैं विलास कौतु : जिनको ऐसे जे युवतिनके चित्त हैं | तेई भ्रमर भैवत हैं रस मकरंदरूपी जो रूप शोभा है ताकी आशासों अर्थ जैसे मकरंद की श्राश करि तड़ाग में भंवर मॅवत हैं तैसे रूपकी आशकार रामचन्द्र के मुखपर खिनके चित्त भ्रमत हैं ५१ ॥ निशिपालिकाछद ॥ शोभिजति दन्तरुचि शुभ्र उर पा- निये । सत्य जनुरूप अनु रूपक बखानिये॥ श्रोठ मचि रेख
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