पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/६८

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रामचन्द्रिका सटीक । छवि केशव बुद्धि उदार ।। जाकी किरपा शोभिजति शोभा सब ससार ५६ दंडक ॥ को है दमयंती इदुमती रति राति दिन होहि न छबीली छबि इन जोशृंगारिये। केशव लजात जलजात-जातवेद भोपजात रूप बापुरे विरूपसोनिहारिये। मदन निरूपमा निरूपण निरूप भयो चद बहुरूप अनुरूप के विचारिये । सीताजू के रूपपर देवता कुरूप को हैं रूपही के रूपक तौ वारि वारि डारिये ६०॥ मरालइस ५७ या प्रकार मामो त्रिवेणी रामचन्द्र के चरण सेवतिहै पाठ पदश्लेष है रेशम ौ दुवौ कूलको अतर ५८ बुद्धि तुपार पाठ होइ तो धुद्धि है सुपार हिवारसम क्षणभंगुर जाकी ५६ दमयती नलकी स्त्री इंदुमती अजकी स्त्री रति काम की स्त्री इनको राति दिन भृगारिये तो सीताकी छविसमान इनकी छवि न होय जातयेद अग्नि जातरूप सुवर्ण निरुपम | कहे जाके उपमा कोऊ नहीं अर्थ प्रतिसुंदर जो मदम है सो सीताजूके रूप समता के निरूपण के निर्णय में लाजसों निरूप कहे निःस्वरूप निर्देति भयो नौ घटि बदिकै अनेक रूपको धर्ता जो चन्द्र है ताको अनुरूप के कहे असहशै विचारियत है रूप जो सौंदर्य है ताही के रूपक कहे साम्य को वारि वारि डारियत है ६०॥ गीतिकाछद ॥ सीशोभिजे सखि सुंदरी जनु दामिनी वपुमडिके घनश्यामको जनुसेवहीजड मेघ ओघन छोडिके। यक अग चर्चित चार चंदन चन्द्रिका तजि चंद को। जनु राहुके भयसे वहीं रघुनाथा आनँद कन्दको ६१ मुख एक है मतलोक लोचन लोललोचन को हरे। जनु जानकी सँग शोभिजे शुभ लाज देहनको घरे॥ तह एक फूलनके विभू- षण एक मोतिनके किये । जनु क्षीरसागरदेवतातन क्षीर छोटनिको छिये ६२ सोरठा ॥ पहिरे वसन सुरज पावक युत साहा मनो॥ सहन सुगवित अग मानो देवी मलयकी १३