रामचन्द्रिका सटीक । ६६ प्रणाम || भृगुनंद आशिषदीन । रण होहु अजय प्रवीन १८ परशुराम।। सुनि रामचन्द्र कुमार। मनवचन कीर्चि उदार॥ राम || भृगुवंसके अवतंस । मनवृत्ति है क्यहि अंस १६ परशुराम-मदिराचंद ॥ तोरि शरासन शकरको शुभ सीय स्वयवर मांझ बरी । ताते बढ्यो भभिमान महामन मेरियो नेकन शंक करी ॥ राम ॥ सो अपराध परो हमसों अब क्यों सुधारै तुमहू धों कहो। परशुराम ॥ बाहु दै दोऊ कुठार हि केशव आपने धामको पंथ गहो २० ॥ अजय कहे माको कोज न जीति सकै १८ हमारे बचन सुनो औ उदारकीर्ति सुनो अथवा कीर्ति है उदार जिनकी ऐसे हमारे पचन सुनो अथवा कीर्तिउदार रामचन्द्र को सबोधन है तुम्हारो मन वृत्तिके केहि अश कहे भागों है अर्थ मनोभिलाष कहा है जो होइ सो कहौ १५ सरस्वती उतार्थ अनेक राजा जामें हारिगये ता शरासन को तोरयो | स्वयंवर के मध्य में सीताको परचो तासों तुम्हारे पड़ो अभिमान बढ्यो है सो उचितही है जो एतो पराक्रम करै ताके अभिमान बढ़योई चाहै श्री सकल क्षत्रिनको नाशकर्ता जो मैं हौं ताहू की शका तुम ना करी वासों | तुम्हारे पलको समुझि हमारे भय भयो है तासों सकल क्षत्रिन के नाशको हमारो दोष क्षमाकरि हमारे दोऊ पाहु भी हमारी कुठार आफ्नो करि | हमको दैकै आपने घरको जाउ इनहीं करनसी याही कुगरसों क्षत्रियनको क्षय करयो है तासों तुम करिकै बाहु कुधार खंडिवे की शंका है सो तुम पचन करि हमको दैकै निर्भय करौ इति भाषा अथवा या कुठारको दोऊ पाह दे आपने धामको जाउ बांह वीर देवेकी रीति लोक में प्रसिद्ध है कुछार को षड़ो दोप है तासों दोऊ पाह देवे कयो २० ॥ राम-कुडलिया ॥ टूटै टूटनहार तरु वायुहि दीजत दोप। त्यों अब हरके धनुषको हमपर कोजत रोष ॥ हमपर कीजत रोष कालगति जानि न जाई । होनहार हैरहै मिटै मेटे न
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/७३
दिखावट