६४ रामचन्द्रिका सटीक । चित्रकूट पर्वत गये सोदर सिया समेत ४७ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्री. रामचन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांरामस्य चित्रकूटगमनन्नाम नवम-प्रकाशः ॥ ६ ॥ दर्शनसों सुख देत वियोग सों सुख देत ४७ ॥ इति श्रीमजगजाननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकी प्रसादनिर्मितायाराममनिप्रकाशिकायो नवम प्रकाशः ॥ ६ ॥ दोहा॥ यह प्रकाश दशमें कथा श्रावन भरत सुनाम ।। राजमरण अरु तासु को बसिबो नंदीग्राम १ दोधकछंद ॥ पानी भरतपुरी अवलोकी । स्थावर जंगम जीव संशोकी। भाट नहीं विरदावलि साजे । कुजर गाजै दुदुभि बाजै २ राजसभा न विलोकिय कोऊ । शोक गहे तब सोदर दोऊ।। मंदिर मातु विलोकि अकेली।ज्यों बिन वृक्ष विराजतबेली३ तोटकछद॥ तब दीरघ देखि प्रणाम कियो । उठि के उन कठ लगाइ लियो । न पियो जल संभ्रमभूलिरहे। तब मातु सों बात भरत्थ कहे ४॥ नाम पद भासिद्ध १ । २ राजसभा मे कोऊ न देख्यो तब शोक को गहे औं माता के मंदिर में जाइकै माता को अकेली देख्यो तब शोक गहे ३२४ ॥ विजयाचंद ॥ मातु कहाँ नृप तात गये सुरलोकहिं क्यों सुत शोक लये। सुत कोन सुराम कहां है अबै वन लक्ष्मण सीय समेत गये । वन काज कहा कहि केवल मो सुख तोको कहा सुख या भये । तुमको प्रभुता धिक तोको कहा अप- राध विना सिगरेईहये ५ दोहा॥ भर्तासुतविदेपिणी सबही को दुखदाइ ॥ यह कहि देसे भरत तब कौशल्याफे पार ६
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