पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड १५ मनोहर शहार है। राचन्द्रजी के गुण-समूह जगत के कल्याण रूप हैं, मोक्ष, धन, धर्म और वैकुण्ठ-धाम के देनेवाले हैं ॥१॥ सदगुरु ज्ञान बिरोग-जोग के। विबुध बैद भव भीम रोग के। जननि जनक सिय रोम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के ॥२॥ शान, वैराग्य और योग के लिए रामचरित श्रेष्ठ गुरु रूप है और संसाररूपी भयङ्कर रोग के हेतु अश्विनीकुमार देव-वैद्य हैं । सीताराम प्रेम के माता-पिता और सम्पूर्ण व्रत, धर्म और नियमों का प्रादि कारण है ॥२॥ समन पाप सन्ताप सेाक के। प्रिय पालक परलोक लोक के। सचिव सुमट भूपति विचार के । कुम्भज लाम उदधि अपार के ॥३॥ पाप, दुःख और शोक के लिए दण्डधर ( यमराज) है, लोक तथा परलोक के हेतु प्रेम से पालन करनेवाला है, विचार रूपी राजा का बलवान मन्त्री है और लोभ रूपी अपार समुद्र को सोखनेवाला अगस्त्य मुनि है ॥ ३॥ काम-कोह कलिमल करि गन के । केहरि सावक जन मन बन के ॥ अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दाग्दि दवारि के ॥४॥ भक्तजनों के मनरूपी धन में विहार करनेवाले काम, क्रोध और कलि के दोष रूपी हाथी समूह के लिए सिंह का छौना है। शिवजी को अत्यन्त प्यारा पूज्य अतिथि रूप है और दरिद्र रूपी दावानल के लिए इच्छानुसार जल देनेवाला मेघ रूप है ॥४॥ मन्त्र महा मनि बिषय व्याल के । मेटत कठिन कुअङ्क भाल के ॥ हरन मोह तम दिनकर कर से । सेवक सालि पाल जलधर से ॥५॥ विषय रूपी सर्प विष के लिए रामचरित महामन्त्र ( गारुड़ि) और ,सर्पमणि है, जो मस्तक के लिखे कठिन बुरे लेखों को मिटा देता है । अज्ञान रूपी अन्धकार हरने के लिए सूर्य की किरणों के समान है और सेवकरूपी धान के शिरवा की रक्षा करने में मेष के समान है ॥ ५॥ अभिमत दानि देवतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हरि हर से ॥ सुकबि सरद नभ मन उडुगन से । राम भगत जन जीवन धन से ॥६॥ वाञ्छित फल देने में रामचरित श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान है और सेवा करने में विष्णु तथा शिवजी के समान सहल एवम् सुख देनेवाला है । सुकवियों के मन रूपी शरद ऋतु के आकाश में तारागणों के समान है और रामभक्त जनों का तो जीवन-धन (स्वस्थ ) के समान है ॥ ६॥ सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से। सेवक मन मानस भराल से । पावन गङ्ग तरङ्ग माल से ॥७॥ सम्पूर्ण पुण्यों का फल रूपी विलास समूह के समान है और निःस्वार्थ भाव से संसार