राष्ट्रभाषा पर विचार डाक्टर गिलक्रिस्ट की देख-रेख में जो भाषा पनपी उसी को लक्ष्य कर सर सी० ई० ट्रेवेल्यन जो बाद में मद्रास के गवर्नर (१८५८-६० ई० ) हो गये थे, सन् १८३४ ई० में लिखते हैं-- “The Arabian Hindoostanee, which has grown up at Calcutta under the fostering patronage of Government, and is spoken by the Moonshees of the College of Fort William, and the Mouluvees and students of the Maho- medan College, is quite a different language from that which prevails in any other part of India." ( Application of the Roman Alphabet by M. Williams, M. A. Longman, London, 1869, p. 29 ) सारांश यह कि अरबी हिंदुस्तानी जो कलकत्ता में सरकार के पालन-पोषण में बढ़ी और फोर्ट विलियम कालेज में मुंशियों में बरती गई और मोहम्मेडन कालेज में मौलवियों और विद्यार्थियों में चलती रही हिंदुस्थान के किसी खंड की भी भाषा से सर्वथा भिन्न थी। अरबी हिंदुस्तानी जो ठहरी । स्मरण रहे डाक्टर गिलक्रिस्ट इसी के भक्त थे। अच्छा, तो डाक्टर गिलक्रिस्ट की उक्त हिंदुस्तानी नीति का अवश्यम्भावी परिणाम यह हुआ कि १६ वीं शती के मध्य में हिंदुस्तानी का अर्थ हिंदी नहीं केवल उर्दू हो गया और वह उर्दू के पर्याय में हिंदी के साथ द्वंद्व भाव से चलने लगा फलतः हिंदी और उर्दू के द्वंद्व ने हिंदी और हिंदुस्तानी के द्वंद्व का रूप धारण कर लिया। इस समय हिंदुस्तानी किस शैली का नाम था इसका यथार्थ बोध सर रिचर्ड पुल के इस कथन से हो जाता है-
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