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पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२०

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११० राष्ट्रभाषा पर विचार और समय समय पर स्थायी समिति को परिषद् के संबंध में सूचना देता रहे, तथा संमेलन के अगले अधिवेशन के पहले उस विषय में रिपोर्ट उपस्थित करे। इस समिति के संयोजक काका कालेलकर होंगे।" उस समिति के संयोजक काका कालेलकर ने क्या किया, यह तो एक प्रकार से प्रकृत प्रसंग के बाहर की बात हुई । ध्यान देने की बात यहाँ यह है कि हिंदी-साहित्य संमेलन भारतीय साहित्य परिषद् पर अपनी देखरेख रखना चाहता है। किसी प्रकार उससे तटस्थ रहना नहीं चाहता । यही क्यों ? इसी का तो यह परिणाम है कि संमेलन के अगले अधिवेशन (मद्रास ) में हिंदी की जगह प्रस्तावों में हिंदी हिंदुस्तानी का व्यवहार होता है और उसे राष्ट्र- भाषा का पर्याय समझा जाता है। फिर यह कहना कि भारतीय- साहित्य परिषद् का संमेलन से कोई संबन्ध नहीं कहाँ तक न्यायसंगत है, इसका विचार पाठक स्वयं कर सकते हैं। हमें यहाँ तो केवल इतना और निवेदन कर देना है कि इस भारतीय- साहित्य-परिषद् के सभापति महात्मा गांधी का भी कहना खत भेजने वाले सजन पूछ सकते हैं कि हिंदी या हिंदुस्तानी का हउ छोड़कर सीधा सादा हिंदुस्तानी शब्द' क्यों नहीं काम में लाया जाता ? मेरे पास इसके लिये सीधीसादी एक ही दलील है | वह यह है कि मेरे सरीखे नये व्यक्ति के लिये २५ बरस की पुरानी संस्था को अपना नाम बदलने के लिये कहना गुस्ताखी होगी, फिर त जब कि उसका नाम बदलने की ऐसी कोई जरूरत भी साबित नहीं की गई है। नई परिषद् पुरानी संस्था की ही उपज है । (हंस, जुलाई सन् १९३६ ई०, पृ०६८)