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पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३१

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हिंदुस्तानी की चौथी पोथी कुछ और निवेदन करने के पहले इस पोथी के कतिपय मंत्र वाक्यों को सामने रख दें। संभव है, आपकी समझ में उनके असली रूपा जाँय । सबसे पहले हाथ लगानो लहर खुदा का वूझ फैलाश्मेरा' (पृ०५५) को लीजिये। इस 'फैला' को सामने रखकर शहर को समझ तो लीजिए-- शहर की भक्खियाँ और भौरे इन फूलों पर आकर इकट्ठे हो जाते हैं । (पृ०६३) और अब यदि--काफ़ी रकम न मिले तो फिर आप स्वयं बिक सकते हैं। (पृ० १०१) उधर कौरवों ने द्रोपदी को जीत कर पांडवों के सताने के लिये द्रोपदी की साड़ी उतारनी चाही। इसपर झगड़ा होने लगा । भीष्म ने बीच बचाव किया । (पृ० १३६ ) देखा आपने ? किस खूबी से 'कृष्ण' का नाम उड़ा दिया और एक नया भारत खड़ा कर दिया गया। भाई ! सच बात तो यह है कि भीष्म पितामह भी भरी सभा में उसी अन्नदोष के कारण यह अनर्थ चुपचाप देखते रह गये थे जिस अन्नदोष के कारण हमारी देशी सरकार के सचिव तथा अन्य महानुभाव इल भाषा की चीरहरण-लीला को मौन हो देखते रहे हैं। नहीं तो द्रौपदी' को 'द्रोपदी' क्यों लिखा जाता और भीष्म 'बीच वचाव' क्यों करते ? अरे! क्या सचमुच कौरवों का शासन आ गया है जिसमें सबके सब वही दुःशासन हो रहे हैं ? अच्छा यही सही। पर कृपया यह तो बताने का कष्ट करें कि आखिर राजा राममोहन राय ने क्या अपराध किया है कि