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रेडियो का आदान अर्ज उसका सीधा लगाव तो उस मुगली दरबार से है जिसकी उपज कल की उर्दू है। उर्दू और आदाब अर्ज को मेलमिलाप की देन समझना सत्य का गला घोटना है। उर्दू बिलगाव के लिये पैदा की गई है, कुछ मेलजोल के लिये अपने आप पैदा नहीं हो गई है, वास्तव में 'आदाब अर्ज भी इसी उर्दू का चचा है। यह भी 'आदाब बजा लाने के लिए हो ईजाद हुआ है। अतएव हमारा कहना है कि रेडियो का अनाउन्सर जिस आदाब' को 'अर्ज करता है वह न तो हमारा है और न हमारे प्रिय हिंदी मुसलिम भाइयों का ! तो फिर यह हिंदुस्तानी ही में रात-दिन क्यों चिल्लाया जाता है ? क्या हिंद का कोई अपना 'अदब' नहीं ? क्या यह सदा से मुगलों का गुलाम है ? -- SEN